खाद्य सामाग्री सहित दूसरे कारोबारी कीमतें बढ़ाने की तैयारी में
कोरबा। पेट्रोलियम कंपनियों द्वारा हाल में ही गैस सिलेंडर और तेल की कीमतों में की गई बढ़ोतरी के बाद स्थानीय स्तर पर होटल व्यवसाय के साथ-साथ खोमचा कारोबारी और छोटी दूरी के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा उपलब्ध कराने वाला वर्ग टैरिफ बढ़ाने की सोच रहा है। उनका तर्क है कि सरकारें कीमत बढ़ाने पर आमादा है तो हम नुकसान क्यों झेलें। उधर अर्थतंत्र के क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिनिधियों का कहना है कि किसी भी स्तर पर महंगाई का ग्राफ बढऩे से कुल मिलाकर आम लोगों की जेब पर असर पडऩा ही है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने भले ही पेट्रोल और डीजल पर एक रुपए प्रति लीटर की राहत देने की कोशिश की, लेकिन केंद्र द्वारा एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दिए जाने से वह राहत टिक नहीं सकी। इसका नतीजा यह हुआ कि उज्ज्वला योजना, एपीएल, और व्यावसायिक सिलेंडर सभी की कीमतें लगभग 50 रुपए तक बढ़ा दी गईं।
तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि का असर केवल व्यक्तिगत उपभोग तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह व्यापक बाजार व्यवस्था को प्रभावित करता है। खाद्य व्यवसाय से जुड़े लोगों को अब अपने उत्पादों के दाम बढ़ाने पड़ सकते हैं ताकि वे उत्पादन लागत को संतुलित कर सकें। होटल, रेस्टोरेंट, ढाबे जैसे छोटे व्यवसायों को यह सबसे पहले प्रभावित करता है क्योंकि उनका सीधा संबंध गैस और डीजल पर आधारित सेवाओं से है।
आखिरकार इस पूरी श्रृंखला का सबसे बड़ा भार आम उपभोक्ता पर आता है। उन्हें न केवल रसोई गैस महंगी मिलती है, बल्कि बाजार में खाने-पीने की वस्तुएं, आवश्यक सेवाएं, और यातायात लागत भी महंगी हो जाती है। मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग के लिए यह सीधा आर्थिक दबाव बन जाता है।
अर्थशास्त्र से जुड़े विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकारों के पास अभी भी कोई सुदृढ़ नीति या स्थायी समाधान नहीं है जो महंगाई पर नियंत्रण कर सके। महंगाई से लडऩे के लिए नीतिगत सुधार, नवाचार, और सुधारित सब्सिडी प्रणाली की जरूरत है।
तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि एक ऐसा कारक है जो देश की अर्थव्यवस्था, बाजार व्यवहार, और जनसामान्य की क्रय शक्ति तीनों को प्रभावित करता है। इसकी रोकथाम के लिए केवल अल्पकालिक उपाय नहीं, बल्कि दीर्घकालिक और स्थायी नीति की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह जनहित में संतुलन साधे ताकि विकास और जनकल्याण दोनों साथ चल सकें।