पहले से ही वायु प्रदूषण की समस्या बनी हुई है खतरनाक इस क्षेत्र में
कोरबा, । अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक पर्व दीपावली पर जहां मिट्टी के दिए जलाने की परंपरा है, वहीं पिछले कुछ वर्षों में पटाखों की आतिशबाजी इसका प्रमुख आकर्षण बन गई है। अनुमान है कि इस बार कोरबा जिले में दीपावली के अवसर पर करोड़ों रुपये के पटाखे फूटेंगे, जिनका धुआं वातावरण को और अधिक प्रदूषित करेगा।
औद्योगिक नगर कोरबा पहले से ही बिजली घरों की चिमनियों से निकलने वाले धुएं और कोयला खदानों की धूल (डस्ट) के कारण वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या से जूझ रहा है। ऐसे में पटाखों का धुआं स्वसन संबंधी मरीजों के लिए स्थिति को और बिगाड़ सकता है। कोरबा, बालको नगर, जमनीपाली, कुसमुंडा, बाकीमोंगरा, दीपका जैसे क्षेत्रों में दीपावली के अवसर पर सैकड़ों पटाखों की दुकानें सज चुकी हैं। जिस पैमाने पर यहां बिक्री हो रही है, उससे अनुमान है कि करोड़ों रुपये का कारोबार होगा।लेकिन यह शोर और धुआं पहले से ही प्रदूषणग्रस्त वातावरण में और जहर घोलने का काम करेगा।देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल कोरबा में औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ समय-समय पर कार्रवाई और जुर्माने के बावजूद प्रदूषण की स्थिति में सुधार नहीं हो सका है।विशेषज्ञों का मानना है कि त्योहारी सीजन में वातावरण में सूक्ष्म कणों (पीएम 2.5 और पीएम 10) का स्तर कई गुना तक बढ़ सकता है, जिससे सांस, अस्थमा और हृदय रोगियों के लिए खतरा और बढ़ जाएगा।लोगों की प्रतिक्रिया आखिर कब दूर होगा विकारराजेंद्र नगर क्षेत्र से पार्षद अशोक चावलानी का कहना है कि अक्सर देखा गया है कि जिस चीज का विरोध होता है, लोग उसी की ओर अधिक आकर्षित होते हैं, चाहे इसके दुष्परिणाम बाद में क्यों न भुगतने पड़ें। सामाजिक कार्यकर्ता राजू सोनी ने कहा कि जो चीजें स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक हैं, उनके उन्मूलन के लिए ठोस योजना बनाई जानी चाहिए। कोरबा में प्रदूषण अब सबसे बड़ी सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्या बन चुका है, जिसकी कीमत आम जनता को चुकानी पड़ रही है।कॉलेज छात्र आदित्य सिंह का कहना है कि दिल्ली जैसे महानगरों में अदालतें दीपावली पर पटाखों पर रोक लगाती हैं, लेकिन कोरबा जैसे औद्योगिक क्षेत्र पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता।सवाल यह है कि जब यहां का प्रदूषण स्तर पहले से ही खतरनाक है, तो ऐसे इलाकों के लिए सख्त नियम क्यों नहीं बनाए जाते जानकार कहते हैं कि दीपावली की खुशी को पर्यावरण की सेहत से जोडना अब समय की जरूरत है।