
रायपुर। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस इन दिनों भारी राजनीतिक और सांगठनिक संकट के दौर से गुजर रही है। कांग्रेस में भूचाल के पहले का सन्नाटा फूटने जा रहा है। खासकर आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी के भीतर अंदरूनी असंतोष और नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं तेज हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक असम, उत्तराखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में कांग्रेस नेतृत्व बड़े बदलाव की तैयारी कर चुका है और प्रदेश अध्यक्षों को बदलने की संभावना लगभग तय मानी जा रही है।
पार्टी के भीतर उठ रहे असंतोष के बीच यह भी देखने को मिल रहा है कि कांग्रेस में लगातार वामपंथी विचारधारा से जुड़े युवा नेताओं की एंट्री हो रही है। पुराने और परंपरागत राष्ट्रीय विचारधारा वाले वरिष्ठ नेता पार्टी से या तो अलग हो रहे हैं या किनारे किए जा रहे हैं। पार्टी के आंतरिक सूत्रों के अनुसार, यदि यही सिलसिला जारी रहा तो आने वाले समय में कांग्रेस की मूल पहचान और विरासत खतरे में पड़ सकती है। वहीं दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह संगठित और तैयार नजर आ रही है। भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं में राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पहचान को लेकर ‘हिंदू पार्टी’ की छवि को और मजबूत किया है। पार्टी ने देशभर में अपने युवा कैडर को संगठित करते हुए चुनावी रणनीति पर अग्रिम रूप से काम शुरू कर दिया है।
कांग्रेस की दुविधा बढ़ती ही जा रही है। मार्क्सवादी और कम्युनिस्ट पृष्ठभूमि के युवा नेताओं के लगातार शामिल होने से पार्टी की वैचारिक दिशा को लेकर भ्रम की स्थिति बन गई है। यह दुविधा पार्टी के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर भी असर डाल रही है। सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस आलाकमान आगामी 5 से 10 दिनों के भीतर संकटग्रस्त राज्यों में बदलाव की बड़ी पहल कर सकता है। प्रदेश अध्यक्षों को बदलने का निर्णय संभवतः बिहार चुनाव की तैयारियों से पहले लिया जाएगा, ताकि संगठन में नई ऊर्जा और स्पष्टता लाई जा सके। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस पार्टी के लिए यह ‘करो या मरो’ की स्थिति है। यदि अब भी नेतृत्व स्पष्ट और निर्णायक फैसले नहीं लेता, तो पार्टी का सांगठनिक ढांचा और जनाधार दोनों गंभीर संकट में आ सकते हैं।