
नईदिल्ली, १६ जुलाई ।
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म के मामले में मौत की सजा पाए एक व्यक्ति को मंगलवार को बरी कर दिया। साथ ही, इसने फोरेंसिक साक्ष्यों में कमियों को रेखांकित करते हुए डीएनए नमूनों के प्रबंधन पर देशव्यापी दिशा-निर्देश जारी किए।जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने निर्देश दिया कि अब से फोरेंसिक साक्ष्य वाले ऐसे सभी मामलों में उचित देखरेख के बाद डीएनए नमूने एकत्र किए जाएं और त्वरित एवं उचित पैकेजिंग सहित सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का अनुपालन करते हुए उनका दस्तावेजीकरण किया जाए। बहरहाल, मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जांच को दोषपूर्ण बताते हुए अभियुक्त को राहत प्रदान की और एकत्र किए गए डीएनए साक्ष्य में कमियों को रेखांकित किया। यह पीठ मद्रास हाईकोर्ट की ओर से मार्च, 2019 में पारित एक आदेश के विरुद्ध दोषी की अपील पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने हत्या और दुष्कर्म के मामले में मृत्युदंड दिया था। दोषी को इस मामले में 28 मई, 2011 को गिरफ्तार किया गया था। डीएनए नमूने एकत्र करने से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, साक्ष्य संग्रह को दर्ज करने वाले दस्तावेज में चिकित्सा पेशेवर, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर और पदनाम होने चाहिए। कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति को ऐसे साक्ष्य एकत्र करने में बाधा नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि ऐसे गवाहों को लाने के प्रयासों और उन्हें लाने में असमर्थता को दर्ज किया जाना चाहिए।
आदेश में मामले के जांच अधिकारी को डीएनए साक्ष्य को संबंधित थाने या अस्पताल पहुंचाने और यह सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपा गया है कि नमूने संग्रह के 48 घंटे के भीतर निर्दिष्ट फोरेंसिक लैब में पहुंच जाएं। आदेश में कहा गया कि यदि कोई बाहरी परिस्थिति उत्पन्न हो और 48 घंटे की समय-सीमा का पालन न किया जा सके, तो देरी का कारण केस डायरी में विधिवत दर्ज किया जाएगा। पूरी प्रक्रिया के दौरान आवश्यकतानुसार नमूनों को संरक्षित रखने के लिए आवश्यक प्रयास करने का आदेश दिया गया है।कोर्ट ने कहा, जब तक डीएनए नमूने मुकदमे और अपील आदि के लंबित रहने तक संग्रहीत हैं, तब तक किसी भी पैकेज को विधिवत योग्य चिकित्सा पेशेवर की सिफारिश पर कार्य करते हुए ट्रायल कोर्ट की स्पष्ट अनुमति के बिना खोला, बदला या पुन: सील नहीं किया जाएगा ताकि साक्ष्य की पवित्रता पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े।