नमूना बन गई औद्योगिक क्षेत्र की सडक़, मुश्किलों के बीच जिन्दगी

लोगों ने कहा हमें इंतजार नई सुबह का
कोरबा। सुशासन का राज होने और जिले में विभिन्न प्रकार के कार्यों के लिए असीमित संभावनाएं होने के बावजूद सडक़ों से जुड़ी समस्या लोगों के लिए किसी रहस्यमयी पहेली से कम नहीं है। जहां देखो वहीं सबसे बड़ा मसला सडक़ ही है। उनकी दुर्दशा के कारण आम और खास लोग परेशान हैं। कोरबा नगर निगम क्षेत्र के खरमोरा वार्ड के अंतर्गत औद्योगिक क्षेत्र की सडक़ एक तरह से नमूना बन गई है। उसकी जो संरचना मौजूद है उससे धारण कुछ ऐसी बनती है। बार-बार सुधार के लिए पत्राचार कर थक चुके लोगों ने कहा कि चमत्कार तो होने से रहा फिर भी उन्हें उस सुबह का इंतजार जरूर रहेगा।
कोई अभी से नहीं, लंबे समय से कोरबा जिले में शहरी क्षेत्र की सडक़ों की दुर्गति अपने आपमें बड़ा मुद्दा रही है। ये सडक़ें या तो नगर निगम के अधीन है या लोक निर्माण विभाग के या फिर इनका संरक्षण करना राज्य या केंद्र के उपक्रमों के भरोसे है। यानि इकाईयां ज्यादा, सडक़ें सीमित तब भी समस्याएं। कोरबा में पांच दशक पहले पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश सरकार ने विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) का गठन किया था। 84 गांव को मिलाकर इसका गठन किया गया और क्षेत्र के विकास की बुनियाद रखी गई ताकि क्षेत्र के विस्तार के मामले में ढांचागत विकास बेहतर हो सके। उसी दौरान कोरबा में मौजूदा खरमोरा वार्ड के अंतर्गत औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना की गई। स्थानीय उद्यमियों को अवसर देने और अपनी इकाईयां स्थापित करने के लिए कौडिय़ों की कीमत में भूखंड आवंटित किए गए। वर्तमान में यह क्षेत्र काफी फल-फूल रहा है। बीते वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र के आसपास आवासीय क्षेत्र भी साकार हुआ। खबर के अनुसार वर्तमान में इस इलाके पर से आवागमन करने को लेकर जो सडक़ें बनाई गई है उनकी व्यवस्था एकल के बजाय द्विस्तरीय है। बताया गया कि नगर निगम के आवासीय क्षेत्र की सडक़ों की सुध लेकर उन्हें ठीक कराया है लेकिन औद्योगिक क्षेत्र से वास्ता रखने वाली सडक़ें उपेक्षित है। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि औद्योगिक इकाईयों से जिला उद्योग केंद्र को राजस्व मिलता है इसलिए यहां की सुविधाओं को अपडेट करना डीआईसी की जिम्मेदारी है। लेकिन जब इस तरह की बात होती है तो शायद अधिकारी यह भूल जाते हैं कि दोनों ही क्षेत्र में रहने वाले लोग अपने-अपने कार्यों के एक-दूसरे इलाके जाने के लिए सडक़ों का उपयोग करते ही हैं। ऐसे में सडक़ों की बदहाली उन्हें परेशान करती है। लोगों ने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव के समय यह मुद्दा जोर-शोर से उठा था तब आश्वासन दिया गया था कि इस पर जरूर संज्ञान लिया जाएगा लेकिन लंबा अरसा गुजरने पर इसे विस्मिृत कर दिया गया।
स्थानीय लोग शिकायती लहजे में कहते हैं कि एक तो ऐसे वादे करने ही नहीं चाहिए जिनका सिर-पैर न हो। अगर जनप्रतिनिधि अपने वादे को मुकर सकते हैं तो प्रशासन के अधिकारी जन सुविधाओं की बेहतरी के लिए सक्षम है और यह उनकी जवाबदेही बनती है। देखना होगा कि औद्योगिक क्षेत्र से जुड़ी समस्याओं का समाधान कब तक होता है और स्थानीय लोगों की जीवन से जुड़ी पीड़ा कब तक दूर होती है।

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