मुंबई, 0६ जुलाई ।
वरली के नेशनल स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स डोम में बनाए गए भव्य मंच पर 20 साल बाद हुईं दो चचेरे भाइयों उद्धव और राज ठाकरे की गलबहियां इस बात की गारंटी कतई नहीं हैं कि आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में शिवसेना उद्धव गुट और मनसे का राजनीतिक गठबंधन भी हो ही जाएगा।करीब दो माह पहले राज ठाकरे ने फिल्म निर्देशक महेश मांजरेकर को साक्षात्कार देते हुए कहा था कि महाराष्ट्र के हित के सामने हमारे छोटे-मोटे झगड़े कुछ भी नहीं हैं। विधानसभा चुनाव में हुई दुर्गति से पीडि़त उद्धव ठाकरे को राज के इस बयान में अवसर नजर आया और उनकी पूरी पार्टी ने इसे लपक लिया। तभी से उनकी तरफ से राज के साथ संवाद साधने की कोशिश लगातार की जा रही है। इसी बीच महाराष्ट्र सरकार द्वारा प्राथमिक कक्षाओं में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाए जाने का आदेश जारी किए जाने के बाद जब राज ठाकरे ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी, तो उद्धव को भी उनके सुर में सुर मिलाना अच्छा लगना ही था। सरकार के इस निर्णय के विरोध में मुंबई की गिरगांव चौपाटी से आजाद मैदान तक विरोध मार्च निकालने का फैसला भी पहले राज ठाकरे का ही था। बाद में उद्धव के सिपहसालार संजय राउत ने राज ठाकरे से बात करके यह मोर्चा पांच जुलाई को एक साथ निकालने के लिए उन्हें राजी किया। फिर राज्य सरकार द्वारा हिंदी के लिए जारी आदेश वापस लिए जाने के बाद पांच जुलाई को ही जब विजय उत्सव मनाने का फैसला किया गया, तो भी राज ठाकरे ने साफ कह दिया था कि यह विजय उत्सव सिर्फ मराठी और महाराष्ट्र की अस्मिता तक ही सीमित रहेगा। इसमें किसी राजनीतिक दल का झंडा या निशान दिखाई नहीं देगा। शनिवार को अपने भाषण में भी राज ठाकरे अपनी बात पर कायम रहे और उन्होंने किसी राजनीतिक गठबंधन के कोई संकेत नहीं दिए। लेकिन उनके बाद बोलने खड़े हुए उद्धव ठाकरे ने पूरी रैली को राजनीतिक रंग देते हुए साफ कह दिया कि साथ आए हैं तो साथ ही रहेंगे और मुंबई सहित पूरे महाराष्ट्र में सत्ता हथियाएंगे। उद्धव की इस घोषणा के बाद राज ठाकरे के पास प्रतिक्रिया देने का अवसर नहीं था।
लेकिन उद्धव के भाषण के बाद दोनों परिवारों के नौनिहालों राज के पुत्र अमित ठाकरे एवं उद्धव के पुत्र आदित्य ठाकरे की भी गलबहियां करवाकर पारिवारिक मनोमिलन का संकेत दिया गया। हालांकि, ये सारे संकेत इस बात की गारंटी कतई नहीं देते कि आने वाले मुंबई महानगरपालिका चुनाव या अन्य स्थानीय निकाय चुनावों में दोनों भाइयों में पार्टियों में गठबंधन हो ही जाएगा। इसके पीछे दोनों के अडिय़ल रुख के अलावा महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी में नए सदस्य दल को लेकर अरुचि का भाव बड़ा कारण बन सकता है। कांग्रेस इस गठबंधन का बड़ा घटक है। कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता का आज की रैली में नजर न आना इस बात का द्योतक है कि एक राष्ट्रीय दल कांग्रेस सिर्फ मराठी भाषा और मराठी अस्मिता के चक्कर में पडक़र अपना मुंबई-ठाणे का गैर मराठी भाषी वोट बैंक गंवाना नहीं चाहती।इसके अलावा मुंबई, ठाणे, नासिक और पुणे के जिन-जिन मराठी बहुल क्षेत्रों पर उद्धव दावा करते हैं, वहीं राज ठाकरे का भी मजबूत जनाधार है। इसलिए दोनों के दलों में सीटों का बंटवारा करना भी आसान नहीं होगा।