
चंडीगढ़, १२ अप्रैल ।
लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी और शिरोमणि अकाली दल गठबंधन की दहलीज पर बैठे हैं, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ रही। इस बीच, दोनों दल पंजाब में अपनी जड़ें मजबूत करने में जुट गए हैं। पंजाब में वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में बड़े राजनीतिक बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भाजपा आलाकमान ने भी इसके संकेत दे दिए हैं कि पंजाब में 2027 के चुनाव का आकलन तो सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा भी नहीं कर सकते। भाजपा हाईकमान के इस कथन ने प्रदेश के सियासी जानकारों को फिर सोचने पर मजबूर कर दिया है। बात चाहे पूर्व सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह की हो, केंद्रीय राज्यमंत्री रवनीत सिंह बिट्टू की या फिर प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ की। कांग्रेस के कई धुरंधर भाजपा में आ चुके हैं। सियासी जानकारों के अनुसार 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले आप और कांग्रेस के कई बड़े चेहरे भाजपा का दामन थाम सकते हैं। 2027 के विधानसभा चुनाव में कई नेताओं को टिकट कटने का डर सता रहा है। ऐसे में दोनों राजनीतिक दलों के बीच करीबी बढ़ सकती है। इन बनते और बिगड़ते समीकरणों ने 2027 में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का अंदेशा लगाना शुरू कर दिया है।
गठबंधन की राह छोड़ 2024 में पंजाब में अकेले 13 सीटों पर लोकसभा चुनाव लडऩे वाली भाजपा का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है। बेशक भाजपा एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई, लेकिन लोकसभा चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर में कई सीटों पर वह दूसरे नंबर पर रही। कई सीटों पर भाजपा ने अपने पूर्व गठबंधन दल से बेहतर प्रदर्शन किया है। उधर, अकाली दल बेअदबी के गलतियों का प्रायश्चित कर नए सिरे से खुद को क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर मजबूत करने में जुटा है। बड़ी बात यह कि खुद भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुनील जाखड़ भी यह कह चुके हैं कि पंजाब में अकाली दल जैसे क्षेत्रीय पार्टी का मजबूत होना जरूरी है, जिसे वेट एंड वॉच का एक सटीक उदाहरण माना जा रहा है।