कोरबा। आयुर्वेद अनुसार प्रत्येक माह में विशेष तरह के खान-पान का वर्णन किया गया है जिसे अपनाकर हम स्वस्थ रह सकते हैं।आयुर्वेद चिकित्सक नाड़ी वैद्य डॉ.नागेंद्र नारायण शर्मा ने बताया की भारतीय परंपरा में ऋतुचर्या यानी ऋतुनुसार आहार-विहार करने की परंपरा रही है। यह संस्कार हमें विरासत में मिला है। चैत्र 12 अप्रैल शनिवार तक रहेगा। इस अंतराल में हमें अपने आहार-विहार पर विशेष ध्यान देना चाहिये। चैत्र माह में मौसम में बदलाव होता है, वसंत ऋतु अपने चरम पर होती है।चैत्र माह में वसंत ऋतु का अंत और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत हो जाती है।इस दौरान तापमान धीरे-धीरे बढऩे लगता है, जिससे गर्मी का एहसास होने लगता है। जिससे वातावरण गर्म और शुष्क होने लगता है। चैत्र माह में ऋतु परिवर्तन का समय होने के कारण सर्दी, खांसी एवं ज्वर की संभावना भी बढ़ जाती है। और कमजोर पाचन शक्ति के कारण अपच, उल्टी और डिहाइड्रेशन जैसी बीमारियाँ होने की संभाव०ना भी अधिक रहती है। इसलिये विशेष रूप से हमें तैलीय, मसालेदार भारी भोजन, होटल के भोजन से परहेज करना चाहिये। गर्मी बढऩे के कारण डिहाइड्रेशन की संभावना बढ़ जाती है, इसलिये पानी का उचित मात्रा मे सेवन करना चाहिये। साथ ही चैत्र माह में वातावरण मे शुष्कता के कारण आँखों में सूखेपन की समस्या भी बढ़ जाती है। जिसके बचाव के लिये आँखों को समय-समय पर धोना चाहिये एवं चिकित्सक से परामर्श लेकर आंखों मे गुलाबजल डालें। चैत्र माह में हल्का, ताजा और आसानी से पचने वाला भोजन करे व बासी भोजन से परहेज करें। चैत्र माह में गुड़ के सेवन से बचे क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है। चने का सेवन करना स्वास्थ्य की दृष्टि से हितकर है।