किसी भी मार्ग पर चलें अपने ईश्वर के प्रति सच्ची निष्ठा होनी चाहिए :मधुसूदनाचार्य

जांजगीर चांपा। श्री शिवरीनारायण मठ महोत्सव में श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा का रसपान कराते हुए स्वामी मधुसूदनाचार्य वेदांताचार्य ने श्रोताओं से कहा कि भगवान ही संसार के बनाने वाले हैं, इसके निर्माण में वे किसी का सहारा नहीं लेते। बनाने वाले भी भगवान हैं और बनने वाले भी भगवान ही हैं। इस संसार में सभी जगह पर भगवान ही समाये हुए हैं, वे निर्गुण और सगुण दोनों ही रूपों में विद्यमान है।
उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा को न केवल सुनना चाहिए अपितु उसका चिंतन और मनन भी करना चाहिए इससे कथा श्रवण का लाभ प्राप्त होता है। श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रश्नों का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा कि -जीव मात्र का कल्याण किस में है ? सभी वेदों का सार क्या है? भगवान अवतार क्यों लेते हैं? अवतार लेकर के उन्होंने क्या-क्या किया? भगवान के कितने अवतार हैं ? भगवान कृष्ण के जाने के बाद धर्म ने किसका आश्रय लिया? इन प्रश्नों का समुचित समाधान करते हुए उन्होंने बताया कि- मन, वचन और कर्म से किसी प्रकार किसी भी प्राणी को सुख या शांति प्रदान करना ही भगवान की भक्ति है। हमारे वाणी से किसी को शांति मिलती है तो वह भी भगवान की भक्ति ही है। अवतार का मुख्य प्रयोजन उन्होंने करुणा को निरूपित किया और कहा कि यद्यपि श्रीमद् रामचरितमानस और श्रीमद् भागवत महापुराण में भगवान के अवतार के लिए धर्म को विशेष कारण माना गया है किंतु भगवान करुणा सिंधु हैं और जीव मात्र पर करुणा करने के लिए अवतार धारण करते हैं । भगवान ने अवतार धारण करके इस संसार में क्या-क्या किया ? इसे समझने के लिए श्रीमद् रामचरितमानस और श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा को सुनना होगा! भगवान के अपने लोक गमन के पश्चात धर्म ने श्रीमद् भागवत महापुराण में आकर अपना आश्रय प्राप्त किया।भगवान के भक्तों को भी भागवत ही कहा जाता है। प्रथम अवतार भगवान का सनकादिक ऋषियों के रूप में हुआ और उन्होंने भक्ति का मार्ग प्रशस्त करके जीव मात्र का कल्याण किया। आचार्य जी ने भगवान के अनेक अवतारों की सविस्तार व्याख्या की और कहा कि अखिल कोटि ब्रह्मांड में वेद ही सत्य है उन्हीं के मार्ग पर चलना चाहिए । कलयुग के संध्याकाल अर्थात अवसान के समय भगवान का कल्कि अवतार होगा। श्रोताओं को आगाह करते हुए उन्होंने कहा कि आप चाहें किसी भी मार्ग पर चलें। अपने इष्ट के प्रति आपकी सच्ची निष्ठा अवश्य होनी चाहिए।संत की कृपा से संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है जहां भगवान राम है वही अयोध्या है और जहां भगवान कृष्ण है वही वृंदावन है।मुख्य यजमान के रूप में राजेश्री महन्त जी महाराज हमेशा की तरह मंच पर विराजित थे।

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