
नई दिल्ली। World Stroke Day 2025: एक समय था जब स्ट्रोक को बुजुर्गों से जोड़कर देखा जाता था, लेकिन अब यह धारणा तेजी से बदल रही है। पिछले कुछ सालों में 30 से 40 साल की उम्र के युवाओं में स्ट्रोक के मामले चौंकाने वाली गति से बढ़े हैं।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पटपड़गंज में न्यूरोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. अमित बत्रा का कहना है कि यह बदलाव सिर्फ बेहतर जांच सुविधाओं के कारण नहीं, बल्कि हमारे लाइफस्टाइल, स्ट्रेस और सेहत से जुड़ी अनदेखियों का नतीजा है।
जल्द शुरू हो रहे मेटाबॉलिक रिस्क
आजकल हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएं पहले से कहीं कम उम्र में दिखने लगी हैं। लंबे समय तक बैठकर काम करना, जंक फूड खाना, नींद की कमी और व्यायाम की अनदेखी इस स्थिति को और बिगाड़ रही है। युवा अक्सर इन शुरुआती संकेतों को नजरअंदाज कर देते हैं, जब तक कोई बड़ी घटना, जैसे हार्ट अटैक या स्ट्रोक न हो जाए।
तनाव और नींद की कमी बना बड़ा कारण
तेज रफ्तार लाइफस्टाइल, देर रात तक काम, स्क्रीन पर लगातार नजरें और मानसिक दबाव ने युवाओं की नींद और मानसिक संतुलन दोनों को प्रभावित किया है। लगातार तनाव से शरीर में कोर्टिसोल जैसे हार्मोन बढ़ जाते हैं, जो ब्लड वेसल्स को नुकसान पहुंचाते हैं। नींद पूरी न होना इस खतरे को और बढ़ा देता है, जिससे दिमाग में रक्त प्रवाह असंतुलित हो सकता है।
निकोटिन, ड्रग्स और एनर्जी ड्रिंक्स का खतरा
धूम्रपान और वेपिंग जैसी आदतें रक्त वाहिकाओं की दीवारों को कमजोर करती हैं और खून में थक्के बनने का खतरा बढ़ाती हैं। वहीं, कोकीन और एम्फ़ेटामीन जैसे नशे रक्तचाप में अचानक उछाल लाकर ब्रेन हेमरेज का कारण बन सकते हैं। यहां तक कि एनर्जी ड्रिंक्स और अत्यधिक शराब का सेवन भी शरीर की नसों पर दबाव डालता है।





























