नई दिल्ली/रायपुर। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से जुड़े भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में पूर्व IAS अधिकारी अनिल टूटेजा की गिरफ्तारी की प्रक्रिया पर गंभीर आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) और प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तारी और पूछताछ में दिखाई गई जल्दबाज़ी पर सवाल उठाते हुए अधिकारियों से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है। न्यायमूर्ति ओका ने मामले की सुनवाई के दौरान अधिकारियों के समन जारी करने और गिरफ्तारी की समय-सीमा पर सवाल उठाते हुए कहा, “20 अप्रैल 2024 को शाम 4:30 बजे ACB ने पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन उसी दिन दोपहर 12 बजे ED ने समन जारी कर दिया। बाद में फिर दूसरा समन जारी किया गया और पूरी रात आरोपी से पूछताछ की गई। इतनी जल्दबाज़ी क्यों की गई?” उन्होंने यह भी पूछा कि यदि ACB पहले से पूछताछ कर रही थी, तो ED के लिए दूसरा समन जारी करने की आवश्यकता क्यों पड़ी। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “ACB के अधिकारियों ने अनिल टुटेजा को ED कार्यालय क्यों पहुंचाया? इतनी जल्दबाज़ी तो गंभीर IPC मामलों या आतंकवाद मामलों में भी नहीं होती।” अदालत ने पूरी रात चली पूछताछ को “अक्षम्य” करार दिया और अधिकारियों से पूछा कि वे यह बताएं कि ACB कार्यालय में पूछताछ के दौरान ED के समन क्यों जारी किए गए। अदालत ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे समन के जारी होने और सेवा का समय स्पष्ट रूप से बताएं और यह भी बताएँ कि उन्हें कैसे पता चला कि तुटेजा ACB कार्यालय में थे। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस.वी. राजू ने अधिकारियों की ओर से दलील देते हुए कहा कि अनिल टूटेजा स्वेच्छा से ED कार्यालय आए थे और उनके साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं हुआ। उन्होंने कहा, “वह अपनी मर्जी से आए, उनके साथ कोई जोर-जबरदस्ती या मारपीट नहीं हुई।” राजू ने घोटाले की गंभीरता का हवाला देते हुए अधिकारियों के कदमों को उचित ठहराने की कोशिश की। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “हम अपराध की प्रकृति पर नहीं, बल्कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं।”