जम्मू। विशेष दर्जे की उठापटक के बाद अब जम्मू-कश्मीर की सियासत आरक्षण के मुद्दे पर उबाल लेने लगी है। नई आरक्षण नीति सियासी दलों को रास नहीं आ रही है और आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत के भीतर समेटने की मांग उठा रहे हैं। नेकां के भीतर भी आरक्षण नीति में बदलाव की आवाज उठ रही है और नेकां सांसद आगा सैयद रुहुल्ला ने प्रदेश सरकार को 22 दिसंबर तक का अल्टीमेटम देते हुए मुख्यमंत्री आवास पर धरने की चेतावनी दी है।
पीडीपी व अन्य कश्मीरी दलों का सुर भी कुछ ऐसा ही है। हालांकि कांग्रेस व भाजपा जैसे दल चुप हैं। यहां बता दें कि जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद केंद्र सरकार ने पहली बार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। इसके अलावा पहाड़ियों व अन्य जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर उन्हें सामाजिक तौर पर सशक्त बनाने का प्रयास किया। ऐसे में आरक्षण का दायरा बढ़कर 60 प्रतिशत के करीब जा पहुंचा है। पूर्व में यह लगभग 43 प्रतिशत था। ऐसे में नेकां और पीडीपी का आरोप है कि सामान्य वर्ग को शिक्षण संस्थान और नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। इन दलों ने विधानसभा चुनाव में भी इस मुद्दे पर सरकार को घेरा था और चुनाव के बाद नई आरक्षण नीति की समीक्षा का आश्वासन भी दिया था। अब सरकारी नौकरियां आने की खबर से पूर्व ही आरक्षण का मुद्दा गर्मी पकड़ने लगा है।
जम्मू-कश्मीर के शिक्षा विभाग में लेक्चरर के 575 पदों पर भर्ती की तैयारी है। इनमें सामान्य वर्ग के 238, एससी के 51, एसटी-1 के 61, एसटी-2 के 56, एएलसी के 26, आरबीए के 51, ओबीसी के 42, ईडब्ल्यूएस के 48 पद भरे जाने हैं। भर्ती की तैयारियों की खबर बाहर आने के बाद से ही आरक्षण का मुद्दा उठने लगा है। 2020 में पहाड़ी भाषियों को चार प्रतिशत आरक्षण मिला जनवरी 2020 में जम्मू कश्मीर में तत्कालीन उपराज्यपाल जीसी मुर्मु ने पहाड़ी भाषियों के लिए चार प्रतिशत का आरक्षण तय कर दिया।