कोरबा। कोरबा जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्राम पंचायत बरीडीह के के धनवारपारा मोहल्ला तक प्रशासन आखिर कब पहुँचेगा। यहां तालाब के नाम से 13 लाख रुपए निकाल लिए गए, पर वास्तविक रूप में ऐसा है नहीं।
मनरेगा से बरीडीह के धनवार पारा में नया तालाब खोदने के लिए कार्य की स्वीकृति वर्ष 2016-17 में दी गई थी। इसके लिए 12 लाख 81 हजार 700 रुपए की स्वीकृति 30 दिसंबर 2016 को प्रदान की गई। 100 फीट लंबा और 70 फीट चौड़ा तालाब मनरेगा से निर्मित किया जाना था लेकिन ग्राम पंचायत बरीडीह के धनवार पारा में कोई तालाब का निर्माण दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। इस कार्य के लिए ग्राम पंचायत को निर्माण एजेंसी नियुक्त किया गया था लेकिन इसका कहीं भी अस्तित्व दूर-दूर तक नहीं दिखता। ना तो मनरेगा के काम नजर आ रहे हैं और ना ही तालाब निर्माण के संबंध में कोई प्रमाण अथवा शिलापट्टिका या चिन्हांकन भी दूर-दूर तक नहीं दिख रहा। तालाब का निर्माण इसलिए कराया गया ताकि निर्माण में मनरेगा से लगे मजदूरों को आर्थिक लाभ हो, उन्हें रोजगार प्राप्त हो और तालाब खोदने के बाद ग्रामवासियों को पानी की समस्या से काफी हद तक निजात दिलाया जा सके। जल संपदा के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन का सीधे उल्लंघन किया जा रहा है उसके नाम से पैसे निकालकर हजम किया जा रहा है। तालाब खोदे नहीं जा रहे हैं और ऐसे चंद अधिकारियों/ कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के कारण सरकार की किरकिरी भी हो रही है। जिला पंचायत एवं जनपद पंचायत के द्वारा पूर्व में इस मामले में जांच कराई गई है लेकिन इसके बाद फाइल को दबा दिया गया है जिसमे तात्कालीन जिला सीईओ नूतन कंवर की भी भूमिका रही। उन्होंने अपने कार्यकाल में इस मामले की तह तक जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की और अब जब जिला सीईओ बदल चुके हैं तब नए सीईओ के संज्ञान में यह बात लाई जा चुकी है। इसके बाद भी अब तक कोई कार्यवाही या इसके संबंध में कोई पहल नहीं हो सकी है। आखिर किसे बचाने की कोशिश हो रही है, यह समझ से परे है क्योंकि प्रशासनिक तंत्र में निर्देश/नियम और मनरेगा के मामले में बनाए गए कानून से ऊपर कोई नहीं फिर भी संबंधित अधिकारी, मनरेगा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी, मूल्यांकन कर्ता, सत्यापनकर्ता, सरपंच, सचिव, रोजगार सहायक इन सबको बचाया जा रहा है।
उठ रहे कई सवाल
बताया जा रहा है कि यहां तालाब की खुदाई कराई गई है और इसके एवज में भुगतान भी हुआ है। यदि ऐसा है तो धनवार पारा में मनरेगा निर्मित उक्त तालाब क्यों नजर नहीं आ रहा? क्या तालाब की खुदाई में लगाए गए मजदूर फर्जी थे और फर्जी मजदूरों को भुगतान किया गया है? अगर नहीं है तो तालाब का अस्तित्व कहां है, अगर तालाब खोदा गया था तो उसके साथ क्या किया गया? मामले में एफआईआर के साथ-साथ रिकवरी तात्कालिक तौर पर कराए जाने की आवश्यकता है ताकि तालाब के अपराधियों को सजा मिल सके।