नईदिल्ली, १८ दिसम्बर ।
केंद्र सरकार वर्ष 2030 तक देश में सौर ऊर्जा की क्षमता तीन गुना, कुल वाहनों में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी बढ़ा कर 50 फीसदी करने जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर काम कर रही है।लेकिन अगर इन उद्योगों के लिए जरूरी कच्चे मालों की प्रोसेसिंग की क्षमता देश में स्थापित नहीं की गई तो भारत काफी हद तक इनके आयात पर ही निर्भर रहेगा। अर्जेंटीना के बाद सरकारी कंपनी खनिज विदेश इंडिया लिमिटेड (काबिल) अब ऑस्ट्रेलिया में भी बहुमूल्य खनिजों के कुछ नये खदान खरीदने के करीब है। लेकिन इसका फायदा तभी मिलेगा, जब इनके शोधन के लिए जरूरी प्रोसेसिंग इकाई भारत में लगे। अगर देश में प्रोसेसिंग क्षमता नहीं लगेगी, तो इन खनिजों को चीन भेजना पड़ेगा।यह बात मंगलवार को यहां ग्लोबल डायलॉग ऑन इनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन सेमिनार में शामिल हुए विशेषज्ञों और केंद्र सरकार के बिजली मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और खान मंत्रालय के आला अधिकारियों ने कही।भारत जिस तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है उसे देखते हुए यहां बहुमूल्य खनिजों (क्रिटिकल मिनरल्स) की मांग कई गुना बढऩे वाली है।
वेदांता समूह के आंकलन के मुताबिक, अभी देश में तांबे की मांग सात लाख टन सालाना है जो वर्ष 2030 तक 15 लाख टन, बैट्री उद्योग में लगने वाले लिथियम की मांग अभी महज 4.90 लाख टन है, जो वर्ष 2030 तक बढ़ कर 20 लाख टन हो जाएगी। इलेक्ट्रिक वाहन व संचार उद्योग के लिए जरूरी निकल की मांग अभी चार लाख टन है, जो बढ़ कर आठ लाख टन, कोबाल्ट की मांग इस दौरान 1.40 लाख टन से बढ़ कर पांच लाख टन हो जाने की उम्मीद है। अभी इन खनिजों के लिए भारत पूरी तरह से बाहर से आयात पर निर्भर है।दो वर्ष पहले केंद्र सरकार ने देश की औद्योगिक जरूरत के हिसाब से 30 क्रिटिकल माइन्स की पहचान की है और विदेश में क्रिटिकल माइन्स के अधिग्रहण के लिए काबिल नाम की सरकारी कंपनी का गठन भी किया है।खान मंत्रालय के संयुक्त सचिव दिनेश माथुर का कहना है कि, बजट 2024-25 में सरकार ने नेशनल क्रिटिकल मिशन की घोषणा की है, जिसका मकसद घरेलू उत्पादन को बढ़ाने के साथ ही विदेशों में इन खनिजों की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। हाल ही में अर्जेंटीना में इस तरह के पांच खानों के अधिग्रहण की सफलता मिली है और हम ऑस्ट्रेलिया में कुछ खानों के अधिग्रहण के करीब हैं। लेकिन इनके लिए हमें भारत में इनकी प्रोसेसिंग इकाई स्थापित करनी होगी।
इसका कोई फायदा नहीं होगा कि हम दूसरे देश में खान खरीदें और उसकी प्रोसेसिंग फिर किसी दूसरे देश में हो। सनद रहे कि दुनिया में जितने क्रिटिकल मिनरल्स हैं, उनका 60 से 90 फीसदी तक प्रोसेसिंग चीन में की जाती है। इन प्रोसेसिंग यूनिट को लगाये बिना भारत में सौर उर्जा या इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने का मतलब होगा कि चीन से आयात को बढ़ाना।भारत ने हाल ही में यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका व दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों के साथ क्रिटिकल मिनिरल्स शोध व उत्खनन में सहयोग के लिए रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत की है। साथ ही घरेलू स्तर पर भी पिछले एक वर्ष को दौरान 24 क्रिटिकल खानों में खनन का ठेका कंपनियों को दिया है। जम्मू व कश्मीर में लिथियम का एक भंडार भी मिला है।
लेकिन इनसे घरेलू जरुरतों को पूरा करना मुश्किल होगा।