अवकाश और अन्य कारण से मनमानी चरम पर

कोरबा। छत्तीसगढ़ में सुशासन के संकल्प के साथ जनता ने भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार को अगले पांच साल काम करने का मौका दिया है। चुनाव के दौरान घोषित संकल्प पत्र के दावों को पूरा करने के लिए सरकार काम कर रही है। इन सबसे अलग हटकर महसूस किया जा रहा है कि पिछली सरकार के द्वारा सरकारी कार्यालयों में कामकाज के दिनों की संख्या सप्ताह में 5 दिन करने से कई प्रकार की समस्याएं खड़ी हो गई है। इसके चलते कर्मचारियों को मौज है जबकि जनता को समस्याएं हो रही है।
नई सरकार का गठन हुए तीन महीने का समय हो रहा है। इस दौरान अनेक योजनाओं के क्रियान्वयन और जनता को सहूलियत दिए जाने को लेकर ऐसा लग रहा है कि उपरोक्त व्यवस्था की तरफ न तो सरकार के लोगों ने ध्यान दिया और न ही प्रशासन के अधिकारियों ने। कोरबा सहित अन्य जिलों में कमोबेश एक जैसी स्थिति बनी हुई है। घोषित रूप से सप्ताह में महज 5 दिन ही सरकारी कार्यालय खुल रहे हैं, वह भी तब जब इस अवधि में कोई अवकाश न हो। जबकि कई बार ऐसी स्थिति होती है जब सप्ताह में एक या दो अवकाश पडऩे से कार्यालयों की रौनक 3 से 4 दिन ही रहती है। ऐसे में कार्यालयों में सरकारी योजनाओं के साथ-साथ अन्य संबंधित कामकाज न के बराबर हो पाता है और पेंडेंसी की गति बढऩे लगती है। फाइलों के अंबार लगने से अधिकारी से लेकर कर्मचारियों के सामने भी दिक्कतें होना लाजिमी है। दूसरी ओर यह बात भी देखने को आ रही है कि आगामी कार्यदिवस को अवकाश होने से कर्मचारी वर्ग कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो जाता है और वर्तमान दिवस को समय से पहले ही गोल मारने की मानसिकता बना लेता है। इससे अलग अवकाश के बाद अगले कार्यदिवस को उनकी उपस्थिति अक्सर विलंब से होती है। समय-समय पर होने वाले शिविर और यहां-वहां के कामकाज के चक्कर में कर्मियों की उपस्थिति मौके पर न के बराबर होने के चलते जन सामान्य से जुड़े हुए काम पर सीधा असर हो रहा है। इन सबको ध्यान में रखते हुए अब मांग उठ रही है कि पहले की तरह सरकारी कार्यालयों में कामकाज के दिन सामान्य किये जाने चाहिए न कि उन्हें केवल 5 दिन के लिए संचालित किया जाए। वैसे भी धरना प्रदर्शन और दूसरी मांगों के कारण कामकाज बाधित हो रहा है और निष्पादकता पर भी इसका असर पड़ रहा है।
स्कूलों की सेवाएं जस की तस
दूसरी ओर शिक्षा विभाग, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की सेवाएं जस की तस कायम है। राजपत्रित और अन्य अवकाश को छोड़ दिया जाए तो इन विभागों के कर्मियों को सामान्य रूप से सेवाएं देनी पड़ रही है। पुलिस और स्वास्थ्य के मामले में अवकाश के बहुत ज्यादा मायने नहीं रह गए हैं। इसलिए भी सरकार को सप्ताह के कार्यदिवस के निर्धारण को लेकर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है ताकि कामकाज को और भी बेहतर किया जाना संभव हो सके।
ऐसे बिगड़ रही व्यवस्था
पीडि़तों का कहना है कि शनिवार को सरकार ने कार्यदिवस शून्य रखा है जबकि रविवार को सामान्य अवकाश घोषित है ही। यानि कर्मचारियों को एक साथ दो दिन की छुट्टी। ऐसे में अगर मंगलवार को यदि कोई अवकाश की स्थिति बन रही होती है तो कर्मचारी सोमवार को अर्जित अवकाश का आवेदन लगाने का साथ सीधे-सीधे चार दिन के लिए अपनी व्यवस्था बना लेते हैं। समझा जा सकता है कि इतने समय तक कार्यालयों में स्टाफ के दर्शन नहीं होने से कार्य संपादन पर क्या असर पड़ता होगा।
निरीक्षण के नाम पर औपचारिकता
सरकार ने प्रशासन के अधिकारियों को समय-समय पर सरकारी कार्यालयों का औचक निरीक्षण करने के निर्देश दे रखे हैं। मंशा यह है कि इसी बहाने कार्यालयों के कामकाज को ठीक रखा जाए और कर्मचारियों को निष्ठावान बनाने की सीख मिले। कोरबा जिले में ऐसा कुछ हो भी रहा है इसकी झलक बहुत कम देखने को मिल रही है। कभी कभार प्रशासन के अधिकारी इक्का-दुक्का कार्यालय पहुंचकर यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि फरमान पर काम हो रहा है। अधिकांश कार्यालय इसी वजह से बेलगाम हो चले हैं और वहां कार्य संस्कृतिक का कोई लेना-देना नहीं रह गया है।