प्रत्यक्ष चुनाव में तीन बार भाजपा को मिला मौका
कोरबा। नगीय निकाय चुनाव को लेकर राज्य सरकार ने व्यवस्थागत समर्थन करने संबंधी आदेश जारी कर दिया है। नगरीय निकायों में महापौर, नगर पालिका और नगर पंचायत अध्यक्ष को चुनने का काम इस बार पार्षद नहीं जनता करेगी। यानि जनता के हाथ में अपने निकायों के प्रमुख पदाधिकारी को चुनने की शक्ति भी होगी और चाबी भी। प्रदेश के बड़े निगम में शामिल कोरबा के महापौर बनने को लेकर कांग्रेस और भाजपा से कई दावेदार आगे हैं। लेकिन पूरा दारोमदार आरक्षण प्रणाली और इसके बाद जनता के द्वारा दिए जाने वाले निर्णय पर टिका हुआ है।
पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश के दौरान 1999 में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण को सरकार ने भंग करते हुए इसे नगर निगम में बदल दिया। तब से अब तक हुए पांच चुनाव में प्रथम 15 वर्ष भाजपा के महापौर चुने गए। भाजपा नेत्री श्याम कंवर को प्रथम महापौर बनने का अवसर मिला जबकि मौजूदा मंत्री लखनलाल देवांगन को दूसरे महापौर के रूप में चुना गया। तकनीकी मामलों में विशेष क्षमता रखने वाले जोगेश लांबा ने तीसरे महापौर के बतौर क्षेत्र को कई तरीके से नई पहचान दी। 15 वर्षीय कार्यकाल के बाद चौथा चुनाव भी प्रत्यक्ष प्रणाली से हुआ और कांग्रेस की रेणु अग्रवाल महापौर बनीं जबकि पिछली कांग्रेस सरकार ने अनुकूलता अथवा दबाव का उपयोग करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से पार्षदों के जरिए महापौर का चुनाव कराया और कोरबा सहित सभी निगम को जीत लिया। कोरबा महापौर राजकिशोर प्रसाद का कार्यकाल जाति प्रमाण पत्र और अन्य कारणों से सुर्खियों में रहा।
निगम का यह छठवां चुनाव होने जा रहा है जो प्रत्यक्ष आधार पर होगा। खबरों के मुताबिक भाजपा में लंबे समय से काम कर रहे अनेक नेता महापौर पद के लिए कवायद में जुटे हुए हैं। इनमें वर्तमान और पूर्व अध्यक्ष के साथ-साथ पूर्व व वर्तमान पार्षद भी दावेदारी कर रहे हैं। इन सभी की अपनी उपलब्धियां हैं और अपने उच्च संपर्क। इसी तरह कांग्रेस से भी संगठन के अलावा वर्तमान में पार्षद की भूमिका निभा रहे कुछ चेहरे दावेदारी करने के मामले में आगे हैं। विभिन्न स्थानों पर लगे पोस्टर बताते हैं कि कुछ और दल भी दमखम दिखाने के मूड में हैं।