कोरिया/बैकुंठपुर। अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सुहागिन महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर माता पार्वती और शिव की विधिवत पूजा करती है। इसके साथ ही प्रदोष काल के समय माता पार्वती-शिव जी की की विधिवत पूजा करने के साथ कथा पढऩे का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हरतालिका तीज का व्रत रखा जाता है।
इस दिन केले के पत्ते, बंदनवार से एक मंडप तैयार किया जाता है। इसमें मिट्टी से भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति बनाकर स्थापित किया जाता है। इसके बाद फूल, माला, चंदन, धूप-दीपक आदि चढ़ाया जाता है। इसके साथ ही मंत्रों का जाप करने के बाद अंत में हरतालिका तीज का व्रत जरूर करें। अगर आप हरतालिका तीज के दिन व्रत रखने के साथ इस व्रत कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कैलाश पर्वत में भगवान शिव माता पार्वती के साथ नंदी और अपने गणों के साथ बैठे हुए थे। इस अवसर में मां पार्वती ने शिव जी से पूछा कि हे महेश्वर मैने वह कौन सा पुण्य किया था जिसके कारण आप मुझे पति के रूप में मिले। आप तो अंतर्यामी है, तो आप मुझे अवश्य इस बात को बताएं। इस बात को सुनकर शंकर जी कहते हैं कि हे देवी आपने तो अति उत्तम पुण्य का संग्रह किया था, जिससे आपको मैं प्राप्त हुआ था। आपने भादो मास के शुक्ल पक्ष की तीज के नाम में प्रसिद्ध है। शिव जी ने कहा-हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विकराल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया।