सक्ती। सक्ती सरजुनी में श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन हुआ। पहले दिन श्रोताओं की भारी भीड़ उमड़ रही है।
भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक आचार्य राजेंद्र महाराज ने प्रथम स्कंद का व्याख्यान करते बताया भगवान के श्री चरणों में निष्काम भक्ति का उदय होना, भक्ति का फल भगवत प्राप्ति है। जिन मनुष्यों के जीवन में भगवान की प्रधानता है। वही मानव जीवन धन्य है। बिना भगवान के सारा संसार कूड़े-करकट के समान है। संपूर्ण प्राणियों के कल्याण करने के लिए भगवान धरती पर अवतार भी लेते हैं। भागवत भगवान के अवतारों का इतिहास है। आचार्य ने बताया कि राजा परीक्षित ने भी पांडवों द्वारा पराजित और बलपूर्वक राजमुकुट छीन कर धारण कर लिया था इसलिए कलयुग राजा के सिर पर बैठ गया। राजा परीक्षित को शमिक ऋषि के पुत्र श्रृंगी युवा ऋषि ने श्राप दे दिया कि सातवें दिन तक्षक नाग उसे डस देगा और उसकी मृत्यु होगी। राजा परीक्षित की मृत्यु को सुधारने के लिए शुक्रदेव जी महाराज ने इस संसार का सर्वश्रेष्ठ सत्कर्म, श्रीमद् भागवत कथा सुनाई थी।
आचार्य ने अन्य प्रसंग के साथ सृष्टि वर्णन, भगवान की महत्ता, दिति कश्यप संवाद, हिरण्यकश्यप वध और ध्रुव चरित्र की कथा सुनाई। ध्रुव चरित्र प्रसंग का भाव बताते हुए आचार्य ने कहा कि, निष्ठा पूर्वक दृढ़ संकल्प करने से कोई भी काम कठिन नहीं होता। पांच वर्ष के छोटे से बालक ने दृढ़ संकल्प किया िक या तो भगवान का दर्शन करूंगा या फिर इस शरीर का त्याग कर दूंगा, भगवान सदैव अपने भक्त के वशीभूत है। साक्षात् भगवान नारायण मधुबन में आकर अपने प्रिय भक्तों को दर्शन दिए और भगवान की भक्ति का पुण्य फल ध्रुव को दिव्य ध्रुवलोक के रूप में प्राप्त हुआ। भगवान की भक्ति वही करता है जो भगवान से विभक्त नहीं होता, वही भगवान की भक्ति करता है।