
नईदिल्ली। राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में तीन माह की समयसीमा तय करने के मामले में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ द्वारा सार्वजनिक रूप से सुप्रीम कोर्ट की आलोचना किए जाने के एक दिन बाद राजनीतिक और कानूनी विशेषज्ञों के बीच बहस तेज हो गई है।वरिष्ठ राज्यसभा सदस्य और पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने जहां उपराष्ट्रपति के बयान की निंदा की है, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने इसका समर्थन करते हुए इसकी वैधानिकता का आधार बताया है।वहीं, कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने किसी को भी कानून या संविधान से ऊपर नहीं होने की बात कही है। जबकि द्रमुक ने धनखड़ के बयान पर आपत्ति जताई है। सिब्बल ने कहा कि सभी को पता है कि लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी बीच में होती है। वह सदन के अध्यक्ष होते हैं। वह वोट भी नहीं देते हैं और उनका वोट तभी पड़ता है जब बराबरी की स्थिति आती है। ऐसा ही उच्च सदन में होता है। उन्होंने कहा कि आप विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी से समान दूरी पर होते हैं। कोई भी स्पीकर किसी पार्टी का प्रवक्ता नहीं हो सकता। मैं यह नहीं कहता कि वह (धनखड़) हैं, लेकिन सैद्धांतिक रूप से कोई भी स्पीकर पार्टी का प्रवक्ता नहीं हो सकता। अगर ऐसा होता है तो पद की गरिमा गिरती है।
जेठमलानी ने की धनखड़ के दमदार कदम की तारीफजेठमलानी ने धनखड़ के इस दमदार कदम की तारीफ करने के साथ इसकी कानूनी व्याख्या करते हुए एक्स पर लिखा कि जहां कुछ लोग सरकार के दो अंगों (कार्यपालिका और विधायिका) के बीच संघर्ष के बीच में देश के दूसरे प्रमुख (उपराष्ट्रपति) के आने के औचित्य पर सवाल उठा सकते हैं, लेकिन बिल्कुल स्पष्ट संवैधानिक दोष की ओर इशारा करना (उपराष्ट्रपति एक कुशल कानूनविद भी हैं) कि संविधान के अनुच्छेद 145(3) के अनुसार संवैधानिक प्रविधान की व्याख्या से संबंधित सवाल पर केवल पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार किया जाना चाहिए और दो न्यायाधीशों की पीठ का फैसला अमान्य था, यह निश्चित रूप से संविधान की मर्यादा बनाए रखने की उपराष्ट्रपति के शपथबद्ध दायित्व का निर्वहन होगा।वहीं, सुरेजवाला ने एक्स पर लिखा कि मैं उपराष्ट्रपति की बुद्धिमत्ता और वाक्पटुता का बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन उनके कथन से सम्मानपूर्वक असहमत हूं। कोई भी कानून या संविधान से ऊपर नहीं है, चाहे वह भारत का राष्ट्रपति हो या कोई और अधिकारी।
जबकि द्रमुक के उप महासचिव और राज्यसभा सदस्य तिरुचि शिवा ने एक्स पोस्ट पर लिखा कि संविधान के अनुसार शक्तियों के पृथक्करण के तहत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के पास अलग-अलग शक्तियां हैं। उपराष्ट्रपति की सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर टिप्पणियां अनैतिक हैं।