कोरिया बैकुंठपुर। राजनीति में उम्र बढऩे के साथ अक्सर लोगों की ऊर्जा घटती जाती है, परंतु कुछ नाम ऐसे भी हैं जो उम्र के इस पड़ाव में और अधिक मुखर, सशक्त और निर्भीक हो उठते हैं। छत्तीसगढ़ के पूर्व केबीनेट मंत्री ननकीराम कंवर उन्हीं में से एक हैं। हमें नहीं मालूम कि उनके द्वारा लगाए जा रहे आरोपों में कितनी सच्चाई है, लेकिन इस आयु में, जिस तेवर और निडरता के साथ वे शासन-प्रशासन के खिलाफ लगातार बयान, पत्राचार और आंदोलन कर रहे हैं वह नई पीढ़ी के नेताओं के लिए एक जीवंत उदाहरण है।
संभव है कि कोई कहे यह मीडिया में सुर्खियाँ बटोरने या व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की कोशिश हो, कोई कहे उनके दल ने हाशिए में रखा हो, लेकिन अपने ही दल की सरकार के खिलाफ खुलकर बोलना और सवाल उठाना भी किसी जिगर वाले इंसान का ही काम होता है।
ननकी राम कंवर, आदिवासी समाज से आते हैं, पर जिन लोगों ने अब भी इस समाज को कमज़ोर या अनपढ़ मान रखा है, उनके लिए यह एक स्पष्ट संदेश है कि अब कोई भी वर्ग मौन रहने वाला नहीं है। कंवर का यह रुख बताता है कि आज आदिवासी समाज न केवल राजनीतिक रूप से सजग है, बल्कि वह व्यवस्था के भीतर अन्याय या भ्रष्टाचार को खुलकर चुनौती देने का माद्दा रखता है। एक समय ऐसा भी माना था जब सवर्ण जाति के नेता ही सत्ता के खिलाफ बोलने का साहस करते थे। लेकिन अब राजनीति के रंग बदले हैं। छत्तीसगढ़ में ओबीसी वर्ग से आने वाले किसान नेता चन्द्रशेखर साहू, धनेंद्र साहू, ताराचंद साहू, चरण दास महंत, अजय चंद्राकर और सवर्ण समाज से विद्याचरण शुक्ल, वीरेंद्र पांडे, पवन दीवान, टीएस सिंहदेव, मोहम्मद अकबर, तरुण चटर्जी, बृजमोहन अग्रवाल जैसे नेताओं ने कई बार अपने ही दल की सरकारों पर निशाना साधा। उन्होंने शासन की नीतियों पर सवाल उठाए, गलतियों की आलोचना की और कई बार इसके कारण राजनीतिक नुकसान भी उठाया। फिर भी, उन्होंने अपने सिद्धांतों और स्वाभिमान से समझौता नहीं किया। कंवर, की मुखरता उसी परंपरा की नई कड़ी है जहाँ नेता सत्ता से बड़ा होता है और सच्चाई सबसे ऊपर। आज प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में अनेक मामलों की जांच सीबीआई, ईडी और ईओडब्ल्यू जैसी एजेंसियों तक पहुँच चुकी है। इनमें से कई मामलों की पहल भी ननकीराम कंवर द्वारा ही की गई थी। उन्होंने उन मुद्दों पर भी आवाज उठाई, जिन्हें कई बड़े नेता, अधिकारी टाल जाना ही बेहतर समझते हैं। आज अनेक विभागों में भ्रष्टाचार शिष्टाचार का हिस्सा बन चुका है। पारदर्शिता के तमाम उपायों के बावजूद कुछ अधिकारी-कर्मचारी ‘माल कमाने’ की कला में पारंगत हो चुके हैं। नैतिकता और नीति पर भाषण देने वाले कई लोग निजी जीवन में उन्हीं मूल्यों का उपहास कर रहे हैं। पान दुकानों, चाय की टपरियों और सोशल मीडिया के स्टेटस में नैतिकता का प्रचार करने वाले ही अब ‘भंडारे’ और ‘धर्म-दान’ के जरिए अपने कृत्यों पर पर्दा डाल रहे हैं। ननकी राम कंवर जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, जिस संघर्ष और सामाजिक धरातल से ऊपर उठे हैं, उससे यह उम्मीद नहीं थी कि वे इस उम्र में भी इतनी ऊर्जा और निर्भीकता के साथ सक्रिय रहेंगे। पर वे आज भी उतनी ही स्पष्टता और ईमानदारी से बोलते हैं, जितनी उनसे युवा पीढ़ी के नेताओं को सीखने की ज़रूरत है। उनका तेवर हमें यह याद दिलाता है कि राजनीति केवल सत्ता पाने का साधन नहीं यह समाज और व्यवस्था के प्रति नैतिक उत्तरदायित्व भी है। आज जब अधिकांश नेता सुविधा, पद और प्रोटोकॉल के दायरे में बंध चुके हैं, ननकीराम कंवर जैसे कुछ चेहरे अब भी हमें यह भरोसा दिलाते हैं कि सच्चाई बोलने का साहस, भले ही अकेले ही क्यों न करना पड़े, लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है। ननकीराम कंवर की मुखरता, नई पीढ़ी के नेताओं के लिए केवल चेतावनी नहीं प्रेरणा है। सत्ता से टकराना आसान नहीं होता,जब समाज हित, राज्यहित ईमानदारी से आवाज देती है, तो आदमी खुद सत्ता से बड़ा हो जाता है।