जांजगीर-चांपा। सोनबरसा गांव के अक्तीराम का जीवन संघर्षों से भरा था। वे जांजगीर-चांपा के एक छोटे से गांव में रहते हुए अपनी आजीविका खेती और पशुपालन के माध्यम से चला रहे थे, लेकिन उनके पास इतने साधन नहीं थे कि वे अपने पशुओं के लिए एक अच्छा आश्रय बना सकें। बरसात में उनके मवेशी भीग जाते थे, गर्मी में छांव नहीं मिलती थी, और ठंड में बीमार पड़ जाते थे। इससे न सिर्फ उनके दूध उत्पादन पर असर पड़ता, बल्कि दवा और देखभाल का खर्च भी बढ़ जाता था। ऐसे में एक दिन गांव में आयोजित रोजगार दिवस के माध्यम से मनरेगा अधिकारियों से उन्हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत मिलने वाले पशु शेड योजना के बारे में बताया। फिर क्या था यहां से उनकी जिंदगी में बदलाव आया और उनके घर पशुओं के लिए पक्का पशुशेड का निर्माण किया गया ।