रायबरेली। सरकार लाख जतन करे कि योजनाएं पूरी पारदर्शिता से लागू हों, मगर कुछ भ्रष्ट अधिकारी सरकार की मंशा पर पानी फेरने से बाज नहीं आ रहे हैं। एक ऐसा ही मामला गोशालाओं में संरक्षित गोवंशों के गोबर से जुड़ा सामने आया है।विभाग द्वारा आठ माह में तीस करोड़ का चारा दाना पशुओं को खिलाने का दावा किया गया, जबकि गोबर से होने वाली आय का कहीं कोई हिसाब नहीं। गोशालाओं के संरक्षक, प्रधान, ग्राम सचिव से लेकर मुख्य पशु चिकित्साधिकारी तक को गोबर के विषय में जानकारी नहीं। आखिर गोबर से होने वाली आय कौन खा गया है या कौन खा रहा है, यह बड़ा सवाल है। शासन स्तर पर इस प्रकरण की गंभीरता से जांच कराई जाए तो इसका लाभ डकारने वाले बेनकाब होंगे व बड़े स्तर का भंडाफोड़ होगा। जनपद की 89 गोशालाओं में लगभग 25 हजार गोवंश संरक्षित हैं। शासन हर गोवंश के चारा पानी के लिए प्रतिदिन 50 रुपये देता है। इस तरह जिले में गोशाला के लिए हर माह लगभग तीन करोड़ 75 लाख रुपये दिए जा रहे हैं।बीते आठ माह की बात करें तो तीस करोड़ का चारा दाना पशुओं को खिलाया जा चुका है। गंभीर बात है कि इतनी धनराशि का चारा खाने के बाद गोशालाओं से गोबर कहां गया, इसका कोई हिसाब नहीं। ग्रामीणों की मानें तो गुपचुप तरीके से अधिकारियों की मिलीभगत से संचालक गोशाला से निकलने वाला गोबर बेंच लेते हैं।जिले के आलाधिकारी भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी, एसडीएम, बीडीओ सहित सचिव के कंधे पर गोशाला की निगरानी की सीधे जिम्मेदारी है, इसके बावजूद इन लोगों ने गोबर की खाद बनाकर बेचने की योजना पर कोई मंथन नहीं किया। इससे गोशाला की आमदनी होने के साथ ही आजीविका मिशन के तहत रोजगार के भी अवसर बढ़ते।बाजार में पेंट व अन्य वस्तुएं बनाने वाली कंपनी प्रति किलो गोबर का दाम दो से पांच रुपये देती हैं। वहीं गांवों में एक ट्राली गोबर की कीमत 1000 से 12 सौ रुपये है। उदाहरण लेकर बात करें तो पशु चिकित्सकों के अनुसार एक गोवंश प्रतिदिन औसतन 3 किलो गोबर करते हैं। ऐसे में यदि किसी गोशाला में 400 गोवंश हैं तो रोजाना 1200 किलो गोबर निकलना चाहिए। एक ट्राली में सूखा गोबर लगभग 10 से 12 व गीला गोबर 14 से 15 क्विंटल आता है। कंपनी के हिसाब से प्रति ट्राली की कीमत दो रुपये के दाम से तीन हजार रुपये है। उस हिसाब से 89 गोशालाओं के प्रतिदिन निकलने वाले गोबर की कीमत दो लाख 67 हजार रुपये है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी कुलदीप कुमार द्विवेदी का कहना है कि गोबर को बेचकर ग्राम सभा के खाते में पैसा जमा करना होता है। इसके अतिरिक्त अगर कोई व्यक्ति भूसा या पराली गौशाला में दान करता है तो उसके मांगने पर गोबर दिया जा सकता है।डीएम, सीडीओ व अन्य उच्चाधिकारियों द्वारा गोबर को लेकर नियम बनाए जाते हैं तो उसका पालन किया जाएगा। विभाग के पास गोबर का कोई हिसाब नहीं है। अगर कोई व्यक्ति गोशाला को भूसा दान करता है तो उसके कहने पर उसे गोबर दे दिया जाता है।
कुलदीप कुमार द्विवेदी, मुख्य पशु चिकित्साधिकारीप्रमुख सचिव द्वारा पशु पालन विभाग को गोबर व गाय मूत्र को संकलित कर इससे खाद व अन्य चीज बनाने की बात कही गई थी। सीवीओ नए हैं, हो सकता है इन्हें जानकारी न हो।अरुण कुमार, जिला विकास अधिकारी