जगदलपुर। इंजीनियर से माओवादी संगठन के प्रमुख बनने वाले बसव राजू के बुधवार को बस्तर के अबूझमाड़ के जंगल में मारे जाने के बाद बचे हुए माओवादियों के सामने अब केवल ‘मौत या समर्पण’ का विकल्प रह गया है।

सुरक्षाबलों के आक्रामक अभियान से नक्सली ढेर

सुरक्षा बल के आक्रामक अभियान के चलते माओवादियों को एहसास हो गया है कि वे एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने पर ही उन्हें वैचारिक संघर्ष का एक नया रास्ता मिल सकता है।

70 वर्षीय बसव राजू भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का महासचिव और पोलित ब्यूरो का सदस्य था। उसने ही माओवादी संगठन की नींव रखी थी। उसके मारे जाने से माओवादी लगभग नेतृत्व विहीन हो गए हैं।

अमित शाह ने माओवादियों के खात्मे का संकल्प लिया

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मार्च 2026 तक माओवादियों के खात्मे का संकल्प लिया है, और सुरक्षा बल इस दिशा में आक्रामकता से अभियान चला रहे हैं। ऐसे में माओवादियों के लिए नया नेतृत्व खोजना मुश्किल होगा। छत्तीसगढ़ के पूर्व पुलिस महानिदेशक आरके विज का कहना है कि बसव राजू के मारे जाने से माओवादी संगठन का मनोबल अवश्य टूटा होगा। अबूझमाड़ से कर्रेगुट्टा तक माओवादियों के गढ़ में सुरक्षा बल की स्थिति मजबूत हो चुकी है। यदि माओवादी बंदूक की लड़ाई जारी रखते हैं, तो मुठभेड़ों में उनकी मृत्यु निश्चित है। वहीं, आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने से उन्हें वैचारिक संघर्ष का एक नया रास्ता मिल सकता है। सुरक्षा बल के आक्रामक अभियान से माओवादी लगभग टूट गए हैं, लेकिन अब भी हथियार डालने की बात नहीं कर रहे।हालांकि पिछले डेढ़ वर्ष में छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा के नेतृत्व में चल रहे अभियान से माओवादियों को यह समझ में आ गया है कि वे इस लड़ाई को कभी जीत नहीं सकते।