नईदिल्ली, १४ मई ।
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज विरोधी कानून के दुरुपयोग पर मंगलवार को चिंता जताई। वैवाहिक मामलों में पत्नियों द्वारा पतियों के रिश्तेदारों, विशेषकर बुजुर्ग माता-पिता के खिलाफ दहेज उत्पीडऩ और क्रूरता के प्रविधानों के दुरुपयोग को लेकर चिंता जताते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, क्रूरता शब्द का दुरुपयोग किया जा रहा है। शीर्ष कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (क्रूरता) और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा चार के तहत आरोपों से बरी कर दिया। फैसले में कहा गया कि मामले में एफआईआर पति द्वारा तलाक की याचिका दायर करने के लगभग एक साल बाद दर्ज की गई थी, जिससे आपराधिक मामले के समय और इरादे पर सवाल उठते हैं। विशिष्ट उदाहरणों के बिना क्रूरता को सरलता से स्थापित नहीं किया जा सकता। बिना किसी विशेष तारीख, समय या घटना का उल्लेख किए इन धाराओं को जोडऩे की प्रवृत्ति अभियोजन के मामले को कमजोर करती है और शिकायतकर्ता की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह उत्पन्न करती है। पीठ ने कहा, हम इस बात से चिंतित हैं कि आइपीसी की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धाराओं तीन और चार के तहत शिकायतकर्ता पत्नियों द्वारा दुर्भावनापूर्ण तरीके से बुजुर्ग माता-पिता, दूर के रिश्तेदारों, और अलग रहने वाली विवाहित बहनों को आरोपित बनाया जा रहा है। पति के हर रिश्तेदार को शामिल करने की बढ़ती प्रवृत्ति से पत्नी या उसके परिवार के सदस्यों के दावों पर गंभीर संदेह उत्पन्न होता है और इससे कानून के उद्देश्य विफल होता है। पीठ ने कहा कि इस मामले में पत्नी के क्रुरता और दहेज उत्पीडऩ के आरोप अस्पष्ट हैं, जिनमें विशेष विवरण की कमी हैं और आरोपों के समर्थन में साक्ष्य भी नहीं हैं। कथित शारीरिक हमले के कारण गर्भपात के दावे का समर्थन करने के लिए चिकित्सा रिकॉर्ड भी पेश नहीं किया गया।
पीठ ने कहा, हम आपराधिक शिकायत में गायब विशिष्टताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते। हमें सूचित किया गया है कि अपीलकर्ता की शादी पहले ही समाप्त हो चुकी है। तलाक की डिक्री अंतिम चरण में है, इसलिए अपीलकर्ता के खिलाफ आगे की अभियोजन केवल कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। फैसले में कहा गया कि आरोप स्पष्ट होने चाहिए या हवा में आरोप न लगाएं जाएं।एक महिला ने मानसिक और शारीरिक उत्पीडऩ, दहेज की मांग और क्रूरता के आरोप लगाते हुए अलग हुए पति और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दिसंबर 1999 में शिकायत दर्ज कराई।
यह शादी एक साल भी नहीं टिक सकी थी।महिला ने शारीरिक हमले का दावा किया। यह भी आरोप लगाया कि नौकरी छोडऩे के लिए दबाव डाला गया। हालांकि, अदालत ने देखा कि महिला और उसके पिता की गवाही के अलावा, दावों का समर्थन करने के लिए कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं था।