
कोरबा। जनपद पंचायत पोड़ी-उपरोड़ा में 30 अप्रैल को आयोजित सामान्य सभा की बैठक अब विवादों के घेरे में आ गई है। इस बैठक में 15वें वित्त आयोग से प्राप्त राशि के वितरण को लेकर पारित किए गए प्रस्ताव ने जनपद क्षेत्र क्रमांक 07, 04, 22, 13 और 16 के सदस्यों को नाराज कर दिया है। इन सदस्यों का आरोप है कि बहुमत के नाम पर नियमों की अनदेखी करते हुए जानबूझकर उनके क्षेत्रों को विकास निधि से वंचित किया गया है, जिससे इन क्षेत्रों के विकास कार्यों पर बुरा असर पडऩे वाला है।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने इस मुद्दे पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहा है। पार्टी ने स्पष्ट कहा है कि यदि सात दिनों के भीतर उक्त पांचों जनपद सदस्यों को उनके हिस्से की 15वें वित्त आयोग की राशि नहीं दी गई, तो पार्टी नेशनल हाईवे 130 पर जनपद कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन और चक्काजाम करेगी। आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक उनकी मांगों को पूरा नहीं किया जाता। उन्होंने चेतावनी दी है कि आंदोलन समय के साथ और भी उग्र हो सकता है, जिसकी पूरी जिम्मेदारी शासन-प्रशासन की होगी।
पार्टी द्वारा प्रस्तुत आवेदन में यह उल्लेख किया गया है कि केंद्र सरकार से प्राप्त वित्तीय सहायता का वितरण एक तय अनुपात में होना चाहिए। ग्राम पंचायत को 75 प्रतिशत, जनपद पंचायत को 15 प्रतिशत, और जिला पंचायत को 10 प्रतिशत। यह राशि आमतौर पर जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्रफल और क्षेत्रीय आवश्यकता के आधार पर वितरित की जाती है। लेकिन जनपद पंचायत पोड़ी-उपरोड़ा में पारित किया गया प्रस्ताव इस संतुलन और पारदर्शिता को ध्वस्त करता प्रतीत होता है।
इस मुद्दे के केंद्र में जनपद सीईओ जयप्रकाश डडसेना भी आ गए हैं। सदस्यों ने उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि उन्होंने जनसुनवाई और पारदर्शिता के सिद्धांतों की अवहेलना की है और एकतरफा निर्णय लिए हैं। जवाब में, डडसेना ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि बैठक में पारित प्रस्ताव बहुमत के आधार पर वैध रूप से पारित किया गया है और यह जनपद पंचायत की सामूहिक इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रस्ताव को बताया नाजायज
प्रभावित जनपद सदस्यों का कहना है कि यह प्रस्ताव न केवल छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993 की धारा 50 और 51 का उल्लंघन करता है, बल्कि जनप्रतिनिधियों के संवैधानिक अधिकारों का भी हनन है। इन धाराओं के तहत प्रत्येक जनपद सदस्य को अपने क्षेत्र में विकास कार्यों हेतु वित्तीय अधिकार प्राप्त हैं। प्रस्ताव के ज़रिए उन्हें वित्तीय निर्णयों से बाहर रखना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के साथ धोखा है।