
कोरिया बैकुंठपुर। सन् 1600 से पहले कोरिया का इतिहास स्पष्ट नहीं है। डाल्टन के अनुसार, बालंद कोरिया के पहले शासक थे। उनकी राजधानी सीधी में थी। उनके वंशज आज भी सीधी जिले के मड़वास में रहते हैं। उनके कार्यों के अवशेष अब भी मौजूद हैं। सरगुजा जिले के भैयाथान ब्लॉक के कुदरगढ़ में देवी महामाया का मंदिर उन्होंने बनवाया था। सोनहत के पास मेंड्रा गांव के उत्तर की पहाडिय़ों को बालंद पहाड़ कहा जाता है।
डाल्टन के अनुसार, कोल राजा और गोंड जमींदारों की सेना ने बालंदों को कोरिया से खदेड़ दिया। कोल को कोंच कोल कहा जाता था। उन्होंने 11 पीढिय़ों तक शासन किया। एक मत के अनुसार, उनकी राजधानी कोरियागढ़ थी। कोरियागढ़ के ऊपर एक पठार है। दूसरा मत कहता है कि कोल राजा की राजधानी पोड़ी के पास बचरा गांव में थी। गांव में एक मिट्टी का टीला है। ग्रामीणों का मानना है कि वहीं कोल राजा का निवास था। संभव है कि कोरिया के दक्षिण में कोल और उत्तर में बालंदों का शासन रहा हो। 17वीं सदी की शुरुआत में मैनपुरी के अग्निकुल चौहान राजा के दो चचेरे भाई दलथंबन साही और धारामल साही जगन्नाथ पुरी से लौट रहे थे। उनके साथ एक छोटी सेना थी। वे मैनपुरी से वाराणसी, मिर्जापुर, सीधी, सरगुजा, छोटानागपुर और संबलपुर होते हुए लौट रहे थे। वापसी में वे सरगुजा की राजधानी बिश्रामपुर में रुके। बाद में इसका नाम अंबिकापुर पड़ा। उन्होंने जोड़ा तालाब के पास डेरा डाला। तभी सरगुजा के महाराजा राजधानी से बाहर थे। कुछ विद्रोही सरदारों ने महल घेर लिया। रानी ने चौहान भाइयों को राखी भेजी। दोनों भाई मदद को आए। विद्रोहियों को खदेड़ दिया। रानी ने उन्हें धन्यवाद दिया और झिलमिली क्षेत्र की जागीर दी। इसे बड़े भाई दलथंबन साही ने स्वीकार किया। यह क्षेत्र बालंदों के अधीन था। चौहान भाई रेहर नदी के किनारे कसकेला गांव में बस गए। उन्होंने बालंद सेना को हराया। पाखरिया लोगों को भी हराया, जो सरगुजा के खिलाफ विद्रोह करते थे। वे सरगुजा को कर देते थे। महाराजा अमर सिंह ने उन्हें भैया की उपाधि दी। राखी के कारण उन्हें रानी का भाई माना गया। इसलिए क्षेत्र को भैयास्थान कहा गया। बाद में यह भैयाथान कहलाया। कुछ समय बाद छोटा भाई धारामल साही अलग राज्य बनाना चाहता था। वह सेना लेकर कोरिया राज्य की ओर बढ़ा। उस समय कोरिया पर कोल राजा का शासन था। धारामल साही ने चिरमी गांव में डेरा डाला। कोल राजा को हराया और कोरिया पर अधिकार कर लिया। कुछ समय चिरमी में रहे, फिर नगर गांव को राजधानी बनाया। बाद में उन्होंने बालंदों को कोरिया के उत्तरी भाग से भी हटा दिया। धारामल साही के तीन पुत्र थे – देवराज साही, अधोराय देव और राघोराय देव। धारामल साही की मृत्यु के बाद देवराज साही राजा बने। वे नि:संतान थे। उनके छोटे भाई के पुत्र नरसिंह देव राजा बने। उनके बाद जीत राय देव, फिर सागर साही देव और फिर अफहर साही देव राजा बने। उनके बाद जहान साही देव राजा बने। वे नि:संतान थे। उनके भतीजे राजा गरीब सिंह बने। उनके छोटे भाई लाल मान सिंह को चंगभाकर की जागीर मिली। इसकी राजधानी भरतपुर थी। राजा गरीब सिंह का जन्म 1745 में नगर में हुआ। 1765 के आसपास नागपुर के भोसले की सेना ने नगर पर हमला किया। राजा गरीब सिंह को चौथ देना पड़ा। कुछ समय बाद उन्होंने चौथ देना बंद कर दिया। राजधानी को राजौली और फिर सोनहत ले गए। 1797 में मराठा सूबेदार गुलाब खान ने सोनहत पर हमला किया। राजा को फिर चौथ देना पड़ा। गुलाब खान के साथ 200 पैदल, 30 घुड़सवार और माचिस थी। सरगुजा के महाराजा ने भी 80 सैनिक भेजे। उन्होंने गांवों को लूटा। लौटते समय पटना जमींदार की सेना ने लतमा गांव में हमला किया।
मराठा सेना सरगुजा लौट गई। पटना जमींदारों के पास आज भी 10 तलवारें और नगाड़े हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी ने नागपुर के मोडजी भोसले को हराया। इसके बाद छत्तीसगढ़ कंपनी के अधीन आ गया। चंगभाकर को कोरिया की सामंती निर्भरता माना गया। वह कंपनी को 386 रुपये कर देता था। यह कर कोरिया राज्य के माध्यम से जाता था। राजा गरीब सिंह के बाद जून 1828 में अमोल सिंह राजा बने। उनका जन्म 1785 में हुआ था। उन्होंने 1848 में कंपनी से समझौता किया। कर की राशि वही रही। 1848 के बाद चंगभाकर ने कर सीधे देना शुरू किया। अमोल सिंह कमजोर राजा थे। शासन रानी कदम कुंवर के हाथ में था। 1864 में उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र प्राण सिंह राजा बने। उनका जन्म 1857 में हुआ था। राजा प्राण सिंह नि:संतान थे। 1897 में उनकी मृत्यु के बाद राजा शिवमंगल सिंह देव 1899 में राजा बने। वे लाल राघोराय देव के वंशज थे। 1900 में उन्होंने राजधानी सोनहत से बैकुंठपुर स्थानांतरित की। बैकुंठपुर राज्य के केंद्र में था। उन्होंने नए महल के पास दो तालाब और एक मंदिर बनवाया। उनकी मृत्यु 18 नवंबर 1909 को हुई। उनके पुत्र रामानुज प्रताप सिंह देव राजा बने। वे नाबालिग थे। राज्य का शासन गोरे लाल पाठक के अधीन न्यायालय को सौंपा गया। वे 1916 तक इस पद पर रहे। फिर पंडित गंगादीन शुक्ल और 1918 के बाद रघुबीर प्रसाद वर्मा ने कार्यभार संभाला। जनवरी 1925 में रामानुज प्रताप सिंह देव को पूर्ण अधिकार मिले। वे स्वतंत्र भारत में कोरिया राज्य के विलय तक राजा रहे। वे सख्त प्रशासक थे। उनका शासन भ्रष्टाचार से मुक्त था। 1931 में लंदन में हुए दूसरे गोलमेज सम्मेलन में उन्होंने हिस्सा लिया। वे ईमानदार और सीधे-सादे थे। उन्होंने खुद को राज्य का संरक्षक माना। 1925 में राज्य की आय 2.25 लाख थी। 1947-48 में यह 44 लाख हो गई। राज्य के पास एक करोड़ रुपये से अधिक का भंडार था। 1928 में बिजुरी-चिरमिरी रेलवे लाइन का निर्माण शुरू हुआ। 1931 में यह पूरी हुई। 1928 में चिरमिरी कोलियरी खुली। खुरासिया कोलियरी भी इसी साल शुरू हुई। 1929 में झगराखांड कोलियरी खुली। 1930 में मनेंद्रगढ़ तक रेलवे पहुंचा। 1935 में रामानुज हाई स्कूल खुला। 15 दिसंबर 1947 को राजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए। 1 जनवरी 1948 को कोरिया राज्य मध्य प्रांत और बरार में मिला दिया गया।