नईदिल्ली, 0२ मार्च । लखनऊ। देश की राजनीति की धुरी माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में बिखरे विपक्ष से भाजपा इस बार क्लीन स्वीप की संभावनाएं लेकर चल रही है। मोदी सरकार की हैट्रिक रोकने के लिए प्रदेश में कांग्रेस और सपा ने हाथ तो मिलाया है, लेकिन विधानसभा चुनाव में फेल हो चुके गठबंधन से लोकसभा चुनाव में भी चमत्कार की उम्मीद नहीं दिखती। वहीं, अकेले चुनाव में उतरने वाली बसपा एक बार फिर ‘शून्य’ वाली स्थिति में पहुंचने की राह पर है।सर्वाधिक 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की राजनीतिक दृष्टि से अहमियत यूं समझी जा सकती है कि राज्य ने अब तक नरेन्द्र मोदी सहित देश को नौ प्रधानमंत्री दिए हैं। 24 करोड़ से अधिक की आबादी वाले प्रदेश में भाजपा ने पिछले दोनों लोकसभा चुनाव बिल्कुल अलग सियासी हालात में लड़े हैं। वर्ष 2014 में भाजपा के सामने जहां कोई बड़ा विपक्षी गठबंधन नहीं था वहीं, वर्ष 2019 के चुनाव में बसपा, सपा और रालोद एक साथ थे।एक दशक पहले वाराणसी लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव मैदान में मोदी के उतरने से राज्य में ऐसी मोदी लहर चली थी कि भाजपा रिकार्ड 71 सीटों पर पहुंच गई थी। भाजपा के सहयोगी अपना दल(एस) ने भी दो सीटें जीती थी। वहीं, सपा को पांच, कांग्रेस दो और बसपा शून्य पर सिमट कर रह गई थी। पिछले चुनाव में सपा-बसपा के मिलने पर भाजपा सहयोगी अपना दल(एस) संग नौ सीटें घटकर 62 पर रह गई थी। वहीं, बसपा शून्य से 10 और सपा पांच सीटों पर ही रही थी। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा था। अमेठी से राहुल गांधी हार गए थे। सिर्फ सोनिया गांधी की रायबरेली सीट बची थी।