चांपा। चांपा के स्व. जीवनलाल साव सामुदायिक भवन में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन के प्रसंग का विस्तार करते हुए ब्यास पीठ पंडित मनोज पाण्डेय ने बताया कि देवी रुक्मणी एवं भगवान श्रीकृष्ण के मांगलिक विवाह के संबंध में रोचक जानकारी प्रदान करते हुए बताया कि विदर्भ राज्य के राजा भीष्मक के एक पुत्र रुक्मी एवं एक पुत्री रुक्मणी थी। राजा भीष्मक अपनी पुत्री से बहुत प्रेम करते थे और उनके विवाह के लिए योग्य वर की तलाश में थे। मगर देवी रुक्मणी के मन में शुरू से ही भगवान श्री कृष्ण की छवि बनी हुई थी। मथुरा के राजा कंस को परास्त करने एवं अन्य बड़े बड़े महारथी को परास्त करने वाले।श्रीकृष्ण की कथा रुक्मणी ने कई लोगों से सुन चुकी थी, इसलिए देवी रुक्मणी ने ठान ली थी कि वह श्री कृष्ण जी से ही विवाह करेंगी। इधर जब जरासंध को इस विषय में पता चला कि रुक्मणी-कृष्ण से प्रेम करती हैं और वह श्रीकृष्ण जी से विवाह करना चाहती हैं। तब जरासंध ने देवी रुक्मणी के भाई रुक्मी के साथ मिलकर रुक्मणी की शादी शिशुपाल के साथ तय कर लिया। मगर विधि को तो कुछ और ही मंजूर था इसलिए यह विवाह कभी ही ना सका। देवी रुक्मणी के पिता भी रुक्मणीजी का विवाह श्री कृष्णजी के साथ करने के लिए सहमत थे, किंतु रुक्मणी के भाई रुक्मी और जरासंध को जैसे ही पता चला कि श्री कृष्ण जी के साथ रुक्मणी के विवाह के लिए पिताजी राजा भीष्मक तैयार हैं। वह रुष्ट होकर अपने पिताजी एवं बहन रुक्मिणी देवी को कारागार में डाल दिया। कारागार में ही देवी रुक्मणी ने श्री कृष्ण की सखी एवं बरसाने की रानी राधा को पत्र लिखा और बताया कि उनके भाई रुक्मणी द्वारा उन्हें और उनके पिताजी को बंधक बना लिया है। कृष्ण और रुक्मणी के बीच भयंकर युद्ध हुआ और श्री कृष्ण देवी रुक्मणी का अपहरण कर उन्हें अपने साथ ले गए। जब श्री कृष्ण का रथ गुजरात के छोटे से गांव माधोपुर पहुंचा तो वहां श्री कृष्ण ने देवी रुक्मणी से विवाह कर लिया। विवाह प्रसंग आने पर श्रद्धालु भक्त सखियों के संग झूम उठें। इसके पूर्व बारात निकाली गई। भजनों के बीच कृष्ण और रुक्मणी संग श्रद्धालु भक्तो ने गोल घेरे में सखियों के साथ नृत्य का आनंद लिया।