नईदिल्ली, 01 मार्च ।
58 सदस्यों के साथ शुरू हुआ अपर यमुना बोर्ड अब केवल दो सदस्यों पर आ गया है। वक्त के साथ नियुक्तियां हुई नहीं तो धीरे-धीरे पद खत्म हो गए। अब संसदीय समिति ने इन पदों को फिर से जीवित करने और उन्हें तत्काल भरने के लिए कहा है। केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय (जिसके अधीन यह बोर्ड आता है) ने भरोसा दिलाया है कि कैडर पुनरीक्षण के साथ इस पर ध्यान दिया जाएगा। मंत्रालय ने बोर्ड के कुछ सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू होने की सूचना भी दी है। अपर यमुना रिवर बोर्ड का मुख्य कार्य यमुना का पानी लाभार्थी राज्यों-हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान के बीच बंटवारे के नियमन की मुख्य जिम्मेदारी है। इसके साथ ही यह बोर्ड न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है। नालों और सीवर सिस्टम की सफाई संबंधित राज्यों का विषय है, लेकिन यह बोर्ड पानी के बंटवारे और आवंटन में उभरने वाले विवादों के समाधान की अहम जिम्मेदारी संभालता है। जल संसाधन से संबंधित संसदीय समिति की हालिया रिपोर्ट के अनुसार अपर यमुना रिवर बोर्ड में तकनीकी और गैरतकनीकी, दोनों तरह से मानव संसाधन की कमी का मुद्दा उठा।समिति के सवाल के जवाब में जलशक्ति मंत्रालय ने पद खत्म हो जाने का ब्यौरा दिया। बताया कि बोर्ड सचिवालय के सभी पदों को केंद्र और यमुना तट वाले राज्यों से प्रतिनियुक्ति के आधार पर भरा जाएगा।
इसी के तहत 1999 में 58 स्थायी पदों को मंजूरी दी गई। लेकिन 2015 में 36 पद इस आधार पर खत्म कर दिए गए कि पांच साल से ज्यादा समय तक उन पर कोई नियुक्ति नहीं हुई।पांच साल फिर बीते और मंत्रालय ने 22 पदों को रिक्त माना और यही बोर्ड की क्षमता निर्धारित की गई। हालांकि तमाम प्रयासों के बावजूद राज्यों से इनके लिए भी प्रस्ताव नहीं मिले। आखिरकार इनमें भी 17 पद समाप्त कर दिए गए। आज स्थिति यह है कि सदस्य सचिव और पर्यावरण विशेषज्ञ के रूप में केवल दो नियुक्तियां हुई हैं। मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि चूंकि प्रतिनियुक्ति पर अफसर और कर्मचारी नहीं मिल रहे हैं, इसलिए वह अब इन्हें अपने कैडर में शामिल करने पर विचार कर रहा है। इस आशय का प्रस्ताव कार्मिक मंत्रालय को भेजा गया है।