
संभव हुआ तो यहां शुरू हो सकेगा वृहद अस्पताल
कोरबा। बड़ी परियोजनाएं काफी कुछ सोच-समझकर और कुल मिलाकर लोगों को लाभ के साथ सहूलियत देने के इरादे से तैयार होती है और उनका क्रियान्वयन किया जाता है। कोरबा के मामले में इस तरह की अवधारणा समय-समय में टूटती रही है और इसके उदाहरण भी सामने आते रहे हैं। राताखार बायपास पर करोड़ों की लागत से तैयार मल्टीलेवल पार्किंग का नाम इसी में शामिल है। इस पर लगे सफेद हाथी के ठप्पे को दूर कैसे किया जाए, अब इस बारे में विचार चल रहा है।
गुरुवार को जिला खनिज न्यास की शासी परिषद की बैठक में मनोनीत प्रतिनिधि के अलावा अधिकारी शामिल हुए। पिछले वर्षों में हुए कार्यों के अलावा लंबित मामलों पर चर्चा हुई। 400 करोड़ के कार्यों को हरी झंडी दी गई। इसमें कई प्रकार के काम शामिल हैं। बैठक के बाद मीडिया से चर्चा में स्थानीय विधायक और प्रदेश सरकार में श्रम, उद्योग मामलों के मंत्री लखनलाल देवांगन ने बताया कि कई अहम प्रस्ताव बैठक में आए। उस पर चर्चा के साथ निर्णय लिए गए। एक सवाल के जवाब में मंत्री ने बताया कि कोरबा के मल्टीलेवल पार्किंग को उपयोगी कैसे बनाया जाए, इसके लिए भी मंथन होना है। अगर संभव हुआ तो मौके पर और जरूरी कामकाज करते हुए उसे वृहद अस्पताल का रूप दिया जाएगा और संचालन के बारे में सोचा जाएगा। इस विषय पर जल्द ही जिला अधिकारी से मंत्रणा की जाएगी। ऐसा इसलिए होना है ताकि बीते वर्षों में करोड़ों की जो धनराशि मल्टीलेवल पार्किंग के निर्माण पर खर्च हुई है कम से कम उसका सदुपयोग हो सके।
राज्य सरकार के मंत्री के द्वारा इस मामले में शुरुआती विचार प्रस्तुत करने से अब फिर से दावे को मजबूती मिल रही है कि मल्टीलेवल पार्किंग उसी रूप में नहीं चल सकेगी, जैसा कि इसके लिए तत्कालीन निगम के अधिकारियों के द्वारा प्रोजेक्ट तैयार किया गया था। निर्माण से लेकर अब तक इसका उपयोग न होने से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं कि आखिर इसके लिए दिमाग किसने दिया था और इसके भविष्यगत परिणामों का खाका तैयार भी किया गया या नहीं। अब जबकि पार्किंग प्रोजेक्ट पर नए तरीके से काम करने को लेकर अटकलें तेज हुई है तब यह भी कहा जा रहा है कि यहां पर बनने वाले बड़े अस्पताल का संचालन सीधे तौर पर स्वास्थ्य विभाग करेगा या किसी एजेंसी को ठेके पर दे दिया जाएगा। कारण यह है कि पिछले वर्षों में 18 करोड़ की लागत से जिला अस्पताल परिसर में ही ट्रामा सेंटर का निर्माण कराया गया था। दो-तीन साल तक स्वास्थ्य विभाग ने इस काम को किया और बाद में रायपुर के बालाजी समूह को दे दिया। उसने भारी-भरकम कमाई की और कोविड के बाद इसे अपने हाल पर छोड़ दिया। लंबे समय तक इसकी बदहाली होने के बाद पिछले वर्ष ही स्वास्थ्य विभाग ने यहां का लंबित लाखों का बिजली बिल अदा किया। कई प्रकार के सुधार कार्य किए। लंबा-चौड़ा खर्च करने के बाद अब स्वास्थ्य विभाग ने कई नए वार्ड यहां शुरू किए हैं और मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर लगातार बन रहे मरीजों के दबाव को कम करने की कोशिश की है।
सरकारी अस्पतालों में बढ़ रहे मरीज
कोरबा में मेडिकल कॉलेज हास्पिटल के अलावा अपर सीएचसी, शहरी स्वास्थ्य केंद्र संचालित हैं जहां पर लगातार मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। हर मौसम में ओपीडी का हाउसफुल होना बताता है कि मरीजों का विश्वास बढ़ा है। वार्डों में भी कमोबेश ऐसे ही हालात हैं। सरकार के द्वारा 5 लाख रुपए तक की फ्री चिकित्सा सुविधा का लाभ देने वाली योजना का विकल्प लोगों को मिला हुआ है। इन सबके बावजूद सरकारी अस्पतालों का क्रेज बताता है कि समय के साथ कई प्रकार के मिथक टूट रहे हैं।