खनऊ, 0२ अगस्त ।
माफिया अतीक अहमद और उसके भाई खालिद अजीम उर्फ अशरफ की हत्या के मामले में पुलिस को क्लीन चिट मिल गई है। पुलिस अभिरक्षा में हुई हत्या की जांच के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति दिलीप बाबा साहब भोसले की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन हुआ था। आयोग की रिपोर्ट गुरुवार को वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 अप्रैल, 2023 को मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय (काल्विन अस्पताल) में अतीक अहमद और अशरफ की हत्या राज्य/पुलिस अधिकारियों के इशारे पर नहीं हुई थी। घटना पूर्व नियोजित नहीं थी और न ही अभिरक्षा में लापरवाही बरती गई थी। इसके संबंध में आयोग को कोई साक्ष्य भी नहीं मिला। घटना अचानक हुई। मिलीभगत की बात सत्य नहीं पाई गई। प्रयागराज पुलिस ने हर संभव सावधानी बरती थी और पर्याप्त पुलिस बल सुरक्षा में लगाया गया था। धूमगनंज में 24 फरवरी 2023 को उमेश पाल, उनके दो सरकारी सुरक्षाकर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उमेश पाल की पत्नी जया पाल की तहरीर पर पुलिस ने माफिया अतीक, अशरफ समेत कई अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। पुलिस ने अतीक को साबरमती और अशरफ को बरेली जेल से लाकर कोर्ट में पेश किया गया था। अदालत ने दोनों भाइयों को पुलिस कस्टडी रिमांड पर भेजने का आदेश दिया था। पूछताछ और पड़ताल में जुटी पुलिस 15 अप्रैल 2023 की शाम कसारी-मसारी के जंगल से पिस्टल और पांच पाकिस्तानी कारतूस बरामद कराने के बाद दोनों को लेकर लौट रही थी।
इसी बीच शूटर लवलेश, सनी और अरुण मीडियाकर्मी बनकर उनका पीछा करते रहे। स्वास्थ्य परीक्षण के लिए दोनों भाइयों को काल्विन अस्पताल ले जाया गया तो गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। हत्याकांड की जांच के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति दिलीप बाबा साहब भोसले की अध्यक्षता में न्यायमूर्ति विरेंद्र सिंह, न्यायमूर्ति अरविंद कुमार त्रिपाठी, पूर्व आईपीएस सुबेश कुमार सिंह व बृजेश कुमार सोनी को शामिल करते हुए न्यायिक आयोग का गठन किया गया था। आयोग ने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार पुलिस प्रत्येक 48 घंटे में अतीक व अशरफ की चिकित्सा जांच कराने के लिए बाध्य थी।
दोनों को लगातार बेचैनी और सांस फूलने की शिकायत थी। अतीक अहमद ने कई बार अपनी पतलून भी गंदी कर ली थी। पुलिसकर्मी दोनों के स्वास्थ्य व सुरक्षा को लेकर चिंतित थे। तीन-चार घंटे के अंतराल में पूछताछ करते थे। निजी अस्पताल से भी डॉक्टर को थाने पर बुलाकर जांच कराई गई थी।आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि साबरमती और बरेली से लेकर प्रयागराज तक मीडिया दोनों की गतिविधि की कवरेज कर रही थी। अतीक व अशरफ मीडिया से बातचीत करने और उनके सवालों को जवाब देने के लिए बहुत उत्सुक थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि बाइट लेने के प्रयास में कतिपय मीडियाकर्मियों द्वारा आत्म संयम का परिचय नहीं दिया गया। मीडिया के इस आचरण को अतीक व अशरफ ने प्रोत्साहित किया था। मीडिया पर किए गए भरोसे का फायदा हमलावरों ने उठाया, जिससे पुलिसकर्मी चकमा खा गए थे।आयोग ने इस बात पर जोर दिया कि अतीक व अशरफ की हत्या से पुलिस को बहुत कुछ खोना पड़ा। पाकिस्तान में निर्मित हथियार, आतंकी संगठनों के साथ संबंध, पंजाब व कश्मीर के हैंडलर, कथित आईएसआईएस से संबंध से जुड़े तमाम सवाल के जवाब अनुत्तरित रह गए। अतीक और अशरफ की हत्या ने जांच एजेंसियों, पुलिस को इन सवालों के जवाब पाने और बहुत गंभीर जांच को तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की किसी उम्मीद से भी वंचित कर दिया था।न्यायिक आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नौ सेकंड की अवधि में पूरी घटना समाप्त हो गई थी। हमलावरों के हथियार फेंकने और हाथ उठाने की कार्रवाई के साथ ही हत्यारोपितों को पकडऩे की कोशिश पुलिसकर्मियों ने की थी। इससे स्पष्ट हुआ कि पुलिसकर्मियों का गोली न चलाने का निर्णय सही था। इसके साथ ही अतीक व अशरफ को अभिरक्षा में रखने के दौरान की गतिविधि को पुलिसकर्मियों द्वारा लीक नहीं किया गया।