
निश्चेतना विशेषज्ञ की बनी हुई है कमी यहां
कोरबा। रामायण कालीन सुषैण वैद्य की कल्पना आप कलयुग में नहीं कर सकते लेकिन संजीवनी तो अभी भी है।चैतमा गांव की 60 वर्षीय अगहन बाई अपनी शारीरिक समस्या को ठीक करने के लिए अब घर पर ही जड़ी बूटियां का सहारा लेने को मजबूर है । बीते सप्ताह सीढिय़ों से गिरने के कारण गंभीर रूप से घायल हुई इस महिला को कटघोरा के सरकारी अस्पताल में ना तो डॉक्टर मिला और ना उपचार। आर्थिक रूप से कमजोर महिला अपने प्राण संकट में फंसे नजर आए और उसने परंपरागत जड़ी बूटी को विकल्प के रूप में लिया है ।
भरोसेमंद सूत्रों ने बताया अगहन बाई के पैर में गिरने से गंभीर चोट आई थी, जिसकी वजह से उनके पैर की हड्डी टूट गई थी। परिजन उन्हें तत्काल कटघोरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए, जहां उन्हें भर्ती तो कर लिया गया, लेकिन एक सप्ताह तक भी उचित उपचार नहीं मिल सका। परिजनों और खुद अगहन बाई का कहना है कि इलाज में लगातार टालमटोल की गई और ऑपरेशन के लिए लंबा इंतजार कराया गया। महिला के बेटे ने बताया कि निजी अस्पतालों का खर्च वहन करने में वे असमर्थ हैं, इसलिए अस्पताल से छुट्टी लेकर उन्हें घर वापस आना पड़ा। अब गांव में पारंपरिक जड़ी-बूटियों और देसी इलाज के सहारे उनकी देखभाल हो रही है।
अस्पताल प्रबंधन ने अपनी सफाई में कहा कि शुरू में अगहन बाई के शरीर में खून की कमी थी, जिसे खून चढ़ाकर ठीक किया गया। बावजूद इसके, ऑपरेशन नहीं हो सका, क्योंकि अस्पताल में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ मौजूद नहीं थे। डॉक्टरों के अनुसार, ऑपरेशन के लिए बुधवार की तारीख तय की गई थी, लेकिन एनेस्थीसिया विशेषज्ञ की अनुपस्थिति के चलते ऑपरेशन की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती थी। बताया गया कि अस्पताल में एनेस्थीसिया विशेषज्ञ 1 मई को सेवाएं देंगे, तभी ऑपरेशन संभव हो सकेगा।
पीडि़ता को कर दिया चुप, परिजनों का आरोप
कटघोरा स्थित कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में हड्डी रोग विशेषज्ञ की उपलब्धता भले ही राहत की बात हो, लेकिन एनेस्थीसिया डॉक्टर जैसे बुनियादी सुविधा के अभाव ने अस्पताल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अगहन बाई जैसी बुजुर्ग मरीज, जो पूरी तरह से सरकारी स्वास्थ्य सेवा पर निर्भर थीं, को इलाज के अभाव में घर लौटने को मजबूर होना पड़ा, जो एक बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।परिजनों का आरोप है कि जब उन्होंने मीडिया के माध्यम से अस्पताल की अव्यवस्था उजागर करने की कोशिश की, तो डॉक्टरों ने उनसे अभद्र व्यवहार किया। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि अस्पताल प्रशासन समस्या के समाधान की बजाय पीडि़तों को चुप कराने में ज्यादा रुचि रखता है।