
रोशनी के पर्व दीपावली के लिए बना रहे मिट्टी के दिए
कोरबा। कार्तिक अमावस्या को आने वाला रोशनी का सबसे बड़ा पर्व दीपावली इस बार भी कोरबा क्षेत्र में आस्था, उमंग और परंपरा के साथ मनाया जाएगा।
भले ही आधुनिकता के इस युग में सजावट के कई नए तरीके आ गए हों, लेकिन दीपावली की असली रौनक अब भी मिट्टी के दीपकों से ही पूरी होती है। कोरबा के सीतामढ़ी क्षेत्र में रहने वाले प्रजापति (कुम्हार) समुदाय के लोग तमाम चुनौतियों के बावजूद अपनी पुश्तैनी कला को जीवित रखे हुए हैं। उनका मानना है कि परंपरा से जुड़ा यह काम सिर्फ जीविका का साधन नहीं, बल्कि संस्कृति की पहचान भी है।
समुदाय के सदस्यों ने बताया कि पहले हाथ से चलने वाले चाक पर दीये और मूर्तियां बनाई जाती थीं, लेकिन अब सरकार की मदद से इलेक्ट्रिक चाक मिलने से काम आसान हुआ है और उत्पादन भी बढ़ा है। उन्होंने कहा कि समय जरूर बदला है, मगर हमने अपनी जड़ों से रिश्ता नहीं तोड़ा। हमारी मेहनत से बनी हर वस्तु दीपावली की रौशनी में चार चांद लगाती है। पिछली पांच-छह पीढिय़ों से कोरबा में बसे कुम्हार परिवार दीये, मूर्तियां, और पूजा सामग्री तैयार कर रहे हैं। उनका कहना है कि बदलते समय के अनुसार वे कुछ सुधार जरूर करते हैं, पर परंपरा को कभी नहीं छोड़ते। सीतामढ़ी के अलावा विवेकानंद चौक और दीपका क्षेत्र में भी कुम्हार समुदाय के लोग त्योहारों के अवसर पर मिट्टी से सुंदर वस्तुएं तैयार कर रहे हैं। उनका कहना है छत्तीसगढ़ में चाहे जमाना कितना भी आधुनिक क्यों न हो जाए, लोग अब भी अपनी पुरानी परंपराओं को दिल से निभाते हैं।