सडक़ बन गई सपना लोगों के लिए
पुरानी नाव से करते हैं आना-जाना
कोरबा। स्वाधीनता के 75 वर्ष पूरे होने पर देश अमृत काल का उत्सव मना रहा है लेकिन आदिवासी बाहुल्य कोरबा जिले में कई गांव ऐसे हैं जो जरूरी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। एक तरह से यह उनके लिए विडंबना है। जिला मुख्यालय से महज 55 किलोमीटर दूर स्थित ऐतमानगर ग्राम पंचायत का आश्रित गांव ठाड़पखना बुनियादी सुविधाओं से अभी भी वंचित है। यहां के लोगों को इंतजार है कि कब कोई ऋषि मुनि यहां पहुंचे तो उनका भाग्योदय हो।
सडक़, पानी और राशन जैसी मूलभूत जरूरतें यहां अब भी सपना बनी हुई हैं। गांव में न तो पक्की सडक़ें हैं, न साफ पानी की सुविधा, और न ही उचित मूल्य की राशन दुकान। लोगों ने बताया कि राशन लेने के लिए उन्हें या तो 10 किलोमीटर का लंबा और कठिन सफर तय करना पड़ता है या फिर अपनी जान जोखिम में डालते हुए नदी पार करनी पड़ती है। नदी पार करने के लिए गांव वालों के पास सिर्फ एक पुरानी नाव है, जो हर मौसम में सुरक्षित नहीं होती। अब तक इसी रास्ते में तीन ग्रामीणों की जान भी जा चुकी है, लेकिन फिर भी हालात जस के तस बने हुए हैं। पानी की समस्या भी ठाड़पखना में विकराल रूप ले चुकी है। गांव के एकमात्र हैंडपंप का पानी पीने लायक नहीं है, उसमें गुणवत्ता की कमी है और दुर्गंध भी है। ग्रामीणों को पीने का पानी बांगो बांध के डूब क्षेत्र से लाना पड़ता है, जो दूर भी है और जोखिम भरा भी। गर्मी के मौसम में पानी का संकट और भी गहरा जाता है, जिससे बीमारियाँ फैलने का खतरा बढ़ जाता है। इस गांव की ज्यादातर आबादी आदिवासी समुदाय से है, जो पहाड़ी इलाकों में बसे हुए हैं। सरकार की विभिन्न योजनाएं आदिवासी विकास के नाम पर चलाई जाती हैं, लेकिन ठाड़पखना जैसे गांवों तक इनका लाभ पहुँच ही नहीं पा रहा। प्रशासनिक लापरवाही और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण ग्रामीण आज भी वही जीवन जीने को मजबूर हैं जो आज़ादी के पहले था। ग्रामीणों ने बताया कि वे कई बार अपनी समस्याओं को लेकर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अब तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं, समाधान नहीं।