
जांजगीर चांपा। समीपस्थ ग्राम खोखरा के मां मनका दाई मंदिर परिसर में आयोजित श्रीराम कथा आयोजन के पांचवें दिन कथा वाचक पंडित ऋचा द्विवेदी ने कहा कि जो संतान अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने के लिए तथा उनके वचनों को मानते हैं जीवन में वही महान बनते हैं। ऐसा ही श्रीराम जी ने किया,जिन्होंने अपने पिता के वचनों को मानकर 14 वर्ष का वनवास काटा। पंडित ऋचा द्विवेदी इस समय राम वन गमन,राम केवट मिलन का कथा सुना रही थी । कथा आयोजन के पांचवें दिन दशकों से भरा मंडप पंडित ऋचा द्विवेदी को बड़े ही भाव विभोर होकर सुन रहे थे । इस अवसर पर उन्होंने कहा कि जब कैकई ने अपने स्वार्थ वस अपने पुत्र के लिए राजतिलक का वरदान मांगा तो दशरथ के नहीं चाहने के बाद भी श्रीराम ने उनके दिए गए वचनों को पूरा करने के लिए सहर्ष वन को चले गए। इससे भाई भरत को बहुत ही दुख हुआ एवं वह इस कृत्य के लिए अपने मन को कोशने लगा। इसके अलावा इसका कारण खुद को कहने लगे तथा वह दूसरे दिन सुबह अपने गुरु जी के साथ भगवान श्री राम को लेने के लिए वन को निकल पड़े परंतु दृढ़ निश्चय से लिया गया निर्णय कभी वापस नहीं लिए जाते इस कारण भगवान श्रीराम स्वयं भरत को राज्य देकर उन्हें वहां से विदा दिए। जब भगवान आगे प्रस्थान किए तो उनकी मुलाकात निषाद राज से हुई जिन्होंने भगवान को आते देखकर अति आनंदित हुए तथा पूरे परिवार भगवान की सेवा में लगे रहे। उनकी मित्रता आज भी लोगों के जुबान पर आ ही जाती है । पंडित ऋचा द्विवेदी ने कहा कि रामायण के जितने भी पात्र हैं सब अपने आप में अद्भुत है जिनके कृतियों से हमें सिख लेने की जरूरत है जहां मित्रता के लिए कोई छोटा कोई बड़ा नहीं होता वही वचनों को पूरा करने के लिए कोई रिश्तेदारी अहमियत नहीं रखती। इस अवसर पर अनेक श्रोतागण श्रीराम कथा सुन रहे थे जिनमें मनका दाई पब्लिक ट्रस्ट के अध्यक्ष राधेश्याम थवाईत,उपेंद्र तिवारी, मनहरण थवाईत,कृष्ण प्रजापति, महेंद्र खरे,बल कृष्ण मिश्रा,ब्रजेश तिवारी, पत्रकार सीताराम नायक शहित अनेक लोग उपस्थित थे।